वलेन्टाइन डे : चौथी क़सम
वैलेन्टाइन डे से पहले-- जल्दी जल्दी अपनी -आँखे- बनवाई कि उस दिन नई नज़र से- एक नज़र भर उसे देख लूं।
वैलेन्टाइन डे के बाद-----लगता है कि अब- ’दो दाँत"-भी बनवाने पड़ेंगे।
एक व्यंग्य व्यथा : वलेन्टाइन डे: चौथी क़सम
ग्रह नक्षत्र इधर से उधर हो जाएं, मगर वलेन्टाइन डे-उर्फ़ प्रेम प्रदर्शन दिवस- कभी इधर उधर नही होता । आएगा तो 14-फ़रवरी को ही। वह प्रेम क्या जो हिल जाए बदल जाए ।
हमारे यहाँ तो ऐसा कोई प्रेमी पैदा ही नही हुआ तो प्रेम- दिवस क्या मनाते । हमारे यहाँ जो प्रेम प्रसंग रहा वो आध्यात्मिक रहा संस्कारी रहा सात सात -जनम के साथ वाला रहा। सात दिन, सात महीने ,सात घंटॆ वाला होता तो मनाते भी । ले देकर लैला मजनू, फ़रहाद, सोहनी महिवाल का प्रेम रहा तो उनका कोई प्रेम दिवस न कोई मनाता है न बताता है ।चूँकि ’वेलेन्टाइन डे " अंगरेजो का बताया हुआ दिन है सो हम बड़ी श्रद्दा पूर्वक मनाते हैं । जो सुख "वाशरूम" कहने में है वह गुसलखाना कहने में कहाँ !
अच्छा, वैलेन्ताइन डे यानी प्रेम प्रदर्शन दिवस भी अजीब डे है । कभी तो वह सरस्वती पूजा [ ज्ञान की देवी] से पहले आ जाता है तो कभी सरस्वती पूजा के बाद।कभी "ज्ञान मार्ग" पहले तो कभी प्रेम मार्ग पहले। एक वर्ष तो दोनो एक ही दिन पड़ गया था। धर्म संकट की स्थित्ति उत्पन्न हो गई थी । गुरु-गोविन्द दोनों खड़े वाली स्थिति। काके लागूँ पाय वाली स्थित। वह तो भला हो कि तात्कालिक ज्ञान जग गया। मन ने कहा बेटा पहले घर की सरस्वती देवि की पूजा फिर बाद में पार्क में ’वेलेन्टाइन देवी की पूजा कर। ज्ञानीजन लक्ष्य प्राप्ति के लिए दोनो मार्ग को एक ही बताते हैं। मैं जाऊँ तो जाऊं किधर जाऊँ, ज्ञानमार्ग कि प्रेम मार्ग। एक बार ,उद्धव जी यही ज्ञान मार्ग गोपियों को समझाने चले थे । क्या हुआ? ख़ुद ही प्रेम मार्ग पर चलने लगे। मगर "संस्कृति सेना" " संस्कार वाहिनी"वाले, पुलिस वाले कहाँ समझ पाते है प्रेम का मर्म और हर बार प्रेम-मार्ग में रोड़े अटकाने चले आते है।
मैं एक सप्ताह पहले से ही तैयारी में लग गया। सरस्वती मैया ने जितना ज्ञान मुझे देना था दे दिया। ।अब तो प्रेम मार्ग ही खोजना बाक़ी रह गया है ।आजकल हर प्रेम मार्ग किसी न किसी पार्क में जाकर खत्म हो जाता है। हर साल अपनी वेलेन्टाइन खोजना पड़ता है । हर साल भी खोजने में लग गया-~एक सप्ताह पहले से --फ़ेसबुक छानने खगाँलने लग गया, इन्स्टाग्राम पर भी मुँह मारने लगा ।सौभाग्य से या दुर्भाग्य से -एक मिल भी गई। बड़ी शिद्दत से चैट करने लग गया। सुबह -शाम-रात-दिन। वक़्त बहुत कम था।लक्ष्य बड़ा था। चैट तो बहुत हुई ।लेकिन निजता पालिसी को ध्यान रखते हुए कुछ अंश ही लगा रहा हूँ कि पाठकगण भी यह समझ लें कि मेरा प्यार एक सप्ताह में ही हिमालय से कितना उँचा ,समन्दर से कितना गहरा हो गया।
पहला दिन ==
- " हेलो पिंकी जी -आप कैसी है ?
- मै ठीक। आप?
-मैं भी ठीक । पर मन नही लगता।
-क्यों ?
-आप बिना ज़िंदगी सूनी सूनी लग रही है। शून्य आकाश के तारे गिन रहा हूँ } आप क्या कर रही हैं?
-मैं उन्हीं तारों को अपने दुपट्टे में टाँक रही हूँ।
-आप भी न, बस--
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अन्य दिन की चैट-
--पिंकी ! तुम कैसी हो?
--मैं ठीक। तुम क्या कर रहे हो अभी ?
--कुछ नहीं बस तुम्हारी याद बहुत आ रही है--बस तुम्हें ही दिन रात याद करता हूँ।
--चल झूठ्ठे !
-चल झूठ्ठी ! बड़ी नखरे मार री आज तो
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उच्चतम स्तर का चैट----जब संबोधन आप से तुम और तुम से तू पर आ जाए तो उसे उच्चतम स्तर की चैट कहते हैं।
-पिंकी ! तू क्या कर रही है ?
--कुछ नहीं ।
-अच्छा सुन ! एक काम कर। कल वैलेन्टाइन डे है। मिलते है पार्क में।
-कौन से पार्क में ?
-भूतहिया पार्क
--हट ! जब तुम हो तो भूतहिया पार्क क्यों ?
-- अरे पगली ! कल वैलेनटाइन डे है न -तो उधर न संस्कार वाहिनी वाले जाते है, न पुलिसवाले।
पिंकी--ना बाबा ना -मैं उधर नहीं जाऊँगी। सेन्ट्रल पार्क में मिल न।क्या गिफ़्ट देगा । पहले बता दे । बाद में लफ़ड़ा ठीक नहीं
मैं -- सोच रहा हूँ आसमाँ से चाँद तोड़ कर तेरे आंचल में डाल दूँ
पिंकी-- हट ! मैं साड़ी थोड़े ही पहनती हूँ कि आँचल में--
मैं --कोई बात नहीं । तो तेरे दुपट्टे में टाँक दूँगा-- ओके अच्छा सुन ! कल तू वो पीली वाली सूट पहन कर आना, जो डी0पी0
में लगाई है। पूरी एन्जिल लगती है एन्जिल ! प्रोमिस?
--तू भी न, नीला वाला सूट पहन कर आना --शाहरुख खान लगता है शाहरुख । प्रोमिस?
--हट ! तू बड़ी वो है
--तू बड़ा वो है ।
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अगर कोई सज्जन इस ’तू बड़ी वो है;-की अंगरेजी बता दे तो अगले साल इंगलिश बोल कर ही उसे इम्प्रेस करूँगा।
जब वार्ता "आप" से शुरू होते हुए --"तुम" से गुज़र कर --"तू" पर आ जाए तो समझिए प्यार परवान चढ़ रहा है ।
और जब तू -तड़ाक --तू -तू मैं-मैं पर आ जाए तो समझो कि ’द इन्ड’। गुरु जी बता गए हैं।
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मैं सेन्ट्रल पार्क, नियत समय से एक घंटा पहले ही पहुँच गया और वह एक घंटा बाद आई। यह ब्रह्मा जी का श्राप है कि कोई लड़की तय समय पर मिलने नहीं पहुँचती ।
देर से आती है और गाते हुए आती है -
ओ ओ मेरे राजा, खफ़ा न होना
देर से आई, दूर से आई
मजबूरी थी फिर भी मैने
वादा तो निभाया, वादा तो निभाया
फिर भी लड़के को कोई शिकायत नहीं होती । लड़के धैर्यवान होते हैं।
दूर से देखा । वह आ रही है । यू-ट्यूब वालो ने मुझे समझाया था कि जब लड़की मिलने आए तो -’मुँह घुमा कर, मुँह फ़ुला कर "- बैठ जाना । उसे यह न पता चले कि तुम बहुत उत्सुक और आतुर हो ।
अत: मैं बेंच पर मुंह घुमा कर बैठ गया ।
वो पास आ गई और उसने जैसे ही मेरे कंधे पर हाथ रखा और मैने मुँह उसकी तरफ़ घुमाया कि-- मुझसे पहले वह चौंक गई ।
गुस्से में पैर पटकते हुए बोली--अरे! तू ! स्साले कंजड़ ! खूसट ! इस साल फ़िर तू ! यू चीटर ----
-- यू चिटरनी! फिर आ गई । टकली ---बड़ी भाव खा री है
उसने कहा ---’लास्ट इयर बोला था यह हार तुम्हारे लिए है ,सोने का है } यू फ़्राडिये ! पीतल का निकला । नॊट दिया था कि शापिंग कर लेना--साला जाली नोट थमा कर खिसक लिया।
वो तो अच्छा हुआ कि मेरे दूसरे लल्लू ब्वाय फ़्रेन्ड ने पेमेन्ट कर दिया -- मैं पकड़ाते पकड़ाते बची--स्साले !कजूस इतना कि 100/- रुपए का कैंडी खिला कर मेरी 430./-
की लिपस्टिक खराब कर दी --क
-- अरे तो तू कौन सी --चार चार ब्वाय फ़्रेंड लेकर घूमती है --
-यू शट- अप !
--क्यूँ शट-अप ?
यू शट अप--
फिर उसने अपनी "सैंडिल -प्रहार" से मुझे शट अप करा दिया । बाक़ी बचा-खुचा शट-अप पुलिस ने करा दिया । और मैं सीधे घर वापस आ गया ।
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श्रीमती जी ने दरवाज़ा खोला --अरे! मुँह पर रुमाल ! रुमाल क्यों?
- कुछ नहीं । वो सामने वाले दो दाँत उखड़वाने ही थे न ..
श्रीमती जी ने सेंक वग़ैरह लगाई पेन किलर दिया तो कुछ आराम आया । फिर मुस्करा कर बोली --मना आए वैलेन्टाइन डे !
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भगवान कसम, दर्द की एक ऐसी टीस उठी कि हृदय में ज्ञान ज्योति जग गई । आत्मा ने कहा--हे मूढ़ प्राणी ! कस्तूरी कुंडल बसे --मॄग ढूँढे बन माहि।
घर में ही वैलेन्टाईन डे मना लेता जी भर-व्यर्थ ही इधर उधर मुंह मारता फ़िरता है-क्या हुआ अगर घर की वेलेन्टाइन मँहगी है--हीरे का हार ही तो मांगती --दाँत तो नही तोड़ती ।
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"तीसरी कसम" में राजकपूर साहब ने तीसरी कसम खाई थी --अब अपनी बैलगाड़ी में किसी बाई जी को लेकर --कभी -
और आज मै चौथे वेलेन्टाइन डे पर चौथी कसम खा रहा हूँ ---अब किसी ’फ़ेसबुकिया लड़की ’की डी0पी) देख कर -अपना वैलेन्टाइन नहीं बनाऊँगा ।
[ कथा सार --जब प्यार की बात ’आप "आप" से शुरु होकर---"तू तड़ाक" पर खत्म हो जाए तो समझ लीजिए कि ’प्यार की सर्किट’ फ़ुँक गई]
-अस्तु
-आनन्द.पाठक-