एक व्यंग्य व्यथा : सर्टिफ़िकेट की रेवड़ी
सोमवार, 27 फ़रवरी 2023
एक व्यंग्य 107/04 : सर्टिफिकेट की रेवड़ी
मंगलवार, 7 फ़रवरी 2023
एक व्यंग्य 106/03: वैलन्टाइन डे-लगा लेना जरा हेलमेट
एक व्यंग्य : वैलेन्टाइन डे (2023)-लगा लेना ज़रा हेलमेट
वैलेन्टाइन डे फिर आ गया । आता है , हर साल आता है । जब आना चाहिए था तब नही आया - जब मैं जवान हुआ करता था। प्रेम क्या है जब समझता था, अब समझने की जरूरत खत्म हो गई।शादी हो गई।
उन दिनों वेलेन्टाइन डे नही आया करता था बल्कि किताबों में फूल और कापियों में चिठ्ठियाँ आया जाया करती थी। सात जनम की कसमें खायी जाती थी। फ़ेसबुक ह्वाट्स अप इमेल के ज़माने में वह अब सब कहाँ । अब तो ’जीवन प्रमाण-पत्र" की तरह अपने प्रेम प्रमाण पत्र का भी नवीनीकरण कराना पड़ता है साल दर साल। साल में एक दिन --भाई देख मेरा प्रेम ज़िंदा है । 7- जनम क्यों? हर साल ही- प्रमाण पत्र ले ले -वेलन्टाइन के दिन।
ऐसे ही एक बार श्रीमती जी [अपनी ] को प्रमाण पत्र जमा कर रहा था --भाग्यवान देख सात जनम तक मेरा तेरा--।अभी वाक्य पूरा भी नही हुआ था कि बोल उठी--रहने दे रहने दे-- सातवाँ जनम यही है -- खोज ले अगले जनम की कोई दूसरी 'गाय' ।
आगे की संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए हा हा--ही ही--हो हो - करते हुए धीरे से निकल लिया ।
पिछले महीने माँ सरस्वती की पूजा करने के बाद अब फ़ुरसत मिली । ज्ञान की अधिष्ठात्री देवि --की पूजन तिथि अंगरेजी महीने के हिसाब से आगे पीछे आती रहती है । मगर वेलेन्टाइन डे -प्रेम दिवस- का -डे फिक्स-14 फ़रवरी। यही कारण है कि कुछ लोगो को ज्ञान देर-सबेर आगे पीछे आता है जब की प्रेम सही समय पर आता है , यदि आप के पास कोई वेलेन्टाइन हो तो । यह परम पवित्र त्योहार आता भी ऐसे समय है --जब मौसम बसंती होता है , रंग बसंती होता है । खेतों में हरियाली होती है धरती धानी रंग की चूनर ओढ़े रहती है--बहार का मौसम आने को होता है ,होली की तैयारी होती है। हवाओं में खुशबू घुलने लगती है ।बदन कसमसाने लगता है। अब वैलेन्टाइन डे -ऐसे मौसम में नहीं आयेगा तो क्या जेठ की तपती दुपहरिया में आयेगा।
प्रेम अब ”दर्शन’ की चीज़ नहीं --प्रदर्शन की चीज़ हो गई। तेरे कितने ब्वाय फ्रेंड ?--मेरी इतनी गर्ल फ़्रेंड।तू कहाँ कहाँ घूमी ? मैं यहाँ यहाँ घूमा। अब सात जनम की बात कहाँ। अब तो 7- महीने -7 दिन की बात रह गई। बात -आप आप से शुरु होती है फिर तुम-तुम तक आती है और "तू-तड़ाक’ पर आकर खत्म हो जाती है।
इधर नवजवान लड़के लड़कियाँ ,महीनों पहले तैयारी में लग जाते हैं ,उधर पुलिसवाले और धर्म के ठेकेदार अपनी तैयारी में। इधर 'प्रेम' को बचाना है उधर ’ हिन्दू संस्कृति" को बचाना है -’अपसंस्कृति नही चलेगी। " न हारा है इश्क़, न दुनिया थकी है" ख़ुमार बाराबंकी साहब वाली स्थिति हो जाती है।
नौजवान तो नौजवान ,सुना है कि आजकल अब ’अंकल लोग" भी इस रोग से पीड़ित हो रहे हैं ।मैं भी।प्रेम एक रोग जो ठहरा।
और शायर ? शायर कॊ कभी वेलनटाइन डे मनाते नहीं देखा । मनाएगा क्या। असल और सच्चा शायर होगा तो जेब से खाली होगा। नंगा नहाए क्या, निचोड़ेगा क्या। खाली जेब वाले शायर कॊ कौन वेलेन्टाइन पूछती है ।डरती होंगी मुआ--गिफ़्ट तो देगा नहीं --आसमान से चाँद तारे तोड़ के लाने की बात और करेगा। जान खाएगा ऊपर से।
मगर शायर ? वह तो अपने वलेन्टाइन को अदाऒं से नज़ाकत से लताफ़त से शायरी सुना सुना कर वैलेन्टाइन डे मनाता होगा ।सोचा इस साल हम ही मनाते है - अगरचे--
मैं शायर तो नहीं ..मगर ऐ हसीं जब से देखा तुझको ,मुझको शायरी ----।
मेरे अन्दर शायरी वाला कीड़ा कुलबुलाता ज़रूर है। कभी कभी तो ऐसा कुलबुलाने लगता है कि बिन पिये ही मैं अपने आप को ग़ालिब समझने लगता हूँ । समझते तो सभी है मगर कहते नही है।
एक पुरानी वेलन्टाइन को धो-पोंछ कर ढूँढ निकाली, एक वार्मअप (warm up) शे'र सुनाया--
न रखने हाथ देती हो, झिड़क देती हो तुम हँस कर
जवानी और चढ़ जाती, मेरी गुल्लो, मेरी शबनम !
मैने कहा -चलो दिलदार चलें-चाँद के पार चलें --यह जालिम ज़माना इस पार्क में वेलेन्टाइन डे मनाने देगा नहीं।
अब मतला सुनाया
इधर दिखती नहीं अब तुम, किधर रहती हो तुम जानम !
चलो मिल कर मनाते हैं ’ वेलनटाइन’ मेरी छम्मम
- हाय ! मुझे क्या मालूम कि वह भी एक शायरा निकली। नहले शे’र पर दहला शे’र लगाया कि मेरा दिल दहला जो उसने सुनाया
दिया जो हार पिछली बार पीतल का बना निकला
दिला दो 'हार' हीरे का नहीं दस लाख से हो कम
खड़े हैं प्यार के दुश्मन लगा लेना ज़रा ’हेलमेट’
मरम्मत कर न दें सर का "पुलिसवाले" मेरे रुस्तम !
अब एक शायर की इज्जत का सवाल था। जमात का सवाल था -शे'र पर शे'र उठाना था।
-फिर एक शे’र पढ़ा।
ज़माने का नहीं है डर, करेगा क्या पुलिसवाला
अगर तुम पास मेरे हो नहीं दुनिया का है फिर ग़म
वह कहाँ मानने वाली थी । किसी जमाने में कौवाली मुक़ाबला होता था अब तो यहा शेर (शेरनी) से मुक़ाबला हो रहा है। इससे अच्छा तो मुकाबला चाय की थड़ी पर हो जाता है जब दो तथाकथित शायर मिलते हैं
बता देती हूँ मैं पहले , नहीं जाना तुम्हारे संग
कि बस ’फ़ुचका’ खिला कर ही मना लेते हो तुम मौसम
बात अब ’आप” से ’तु’म’ पर आ गई । तू तड़ाक तक इतनी जल्दी आ जायेगी सोचा नही था। सुबह होने से पहले शाम आ गई
उसने अगला शे’र पढ़ा-
इधर क्या सोच कर आया कि है यह खेल बच्चों का
अरे ! चल हट निकल टकले , नहीं ’पाकिट’ में तेरे दम
-देख दम की बात न कर कहे देता हूँ। मेरा दम अभी देखा नहीं है तूने -हाँ- मैने जोर से बोला
बात ’सैंडिल’ और सैंडिल के दम तक न पहुँच जाए जल्दी जल्दी मकता पढ़ा और सरक लिया
घुमाऊँगा , खिलाऊँगा, सलीमा भी दिखाऊँगा,
सनम ’आनन’ का है वादा , चली आ ओ मेरी हमदम !
जान बची तो लाखों पाए--
उड़ा वहाँ से तो सीधे -"गौशाला"- मे गिरा।
सुना कि कुछ लोग valentine day की जगह इस वर्ष Cow hug Day यानी "गाय गले मिलन दिवस" मना रहे है
सोचा, श्रीमती जी को ही गले लगा कर वेलन्टाइन डे मना लूँ -बहुत दिन हो गए उन्हें Hug [हिंदी में लिखना ज़रा ठीक नहीं लगा] किए हुए ।शादी के समय श्वसुर जी ने कहा भी था-- मेरी बेटी बिलकुल गऊ है गऊ- गाय है गाय।
( मगर वह यह बताना भूल गए कि वह सींग भी मारती है)
[ नोट - कथा-सार यह कि
किसी "तथाकथित शायर" को किसी "तथाकथित शायरा" के साथ यूँ सरेआम वेलेन्टाइन डे नहीं मनाना चाहिए )
अस्तु
-आनन्द पाठक-