मंगलवार, 20 अगस्त 2024
संस्मरण : श्रीपाल सिंह "क्षेम: [ पुण्य तिथि 24-अगस्त]
मंगलवार, 30 जुलाई 2024
एक व्यंग्य व्यथा 111/08 : --भाँति भाँति के लोग
#एक #व्यंग्य #व्यथा :-- भाँति भाँति के लोग
" तुलसी या संसार में भाँति भाँति के लोग ।
गूगल ने इस दोहे को कहीं "कबीर’ का बताया ,कहीं "रहीम: का । कहीं ’तुलसी’ का बताया, मगर ’आनन’ का नहीं बताया । गूगल -बाबा है , बाबाओं का क्या ठिकाना । जो बता दे, श्रोता आँख मूँद कर ’सिर-चालन’ करने लगते हैं ।
उस ज़माने में ’ फ़ेस बुक- नही था। होता तो कोई ज़रूर लिखता "----मैने लिख दिया-
"फ़ेसबुकिया संसार" में भाँति भाँति के लोग।
कुछ Like की चाह मे, कुछ के admin योग ।।
फ़ेसबुक का "आभासी संसार" लौकिक संसार से कम नहीं । बहुत से ज्ञानी भरे पड़े हैं, कुछ गुरु भी , कुछ घंटाल भी, कुछ दिलजले भी , कुछ दिलरुबा भी। कुछ, "फ़ेक’ भी , कुछ दिलफेंक भी मेरे जैसे ।बाबा लोग तो ख़ैर ठँसे पड़े हैं।साहित्यकार, कवि, शायर तो यत्र तत्र सर्वत्र भरे पड़े है इस पर। असली नकली की बात कहाँ --एक ढूँढो हज़ार मिलते हैं।
मेरे उस्ताद ने कहा था -- "बेटा ! जा फ़ेसबुक पर हर हफ़्ते अपना डी0पी0 [ अपनी तस्वीर] ज़रूर बदलते रहना- - नही बदलेगा तो दुनिया तुझे ’इह लोक’ से ’उह लोक’ की समझ लेगी ।तब से मैं इमानदारी से इस वचन का पालन करता हूँ । बहुत सी महिलाएँ तो दिन में 3-3 बार -बदलती है अपनी डी0पी0 ,सुबह-दोपहर-शाम- खाने से पहले, खाने के बाद। हम जैसे टुट्पुजिए कवियों के लिए प्रेरणास्रोत होती है उनकी तसवीरें । खुदा उनका हुस्न सलामत रखे- और मेरी नज़र । , उनके हुस्न पर दो आब और ज़ियादा कि मेरी शायरी में कुछ जान आए।
फ़ेसबुक पर भाँति भाँति के लोग ।लोगों की कमी नही। कुछ लोग तो ऐसे हैं--कि अचानक एक दिन सुबह उठेंगे और घोषणा कर देंगे--"आज मै अपने ’फ़्रेंड लिस्ट ’से उन तमाम दोस्तों को ’अन फ़्रेंड’ कर रहा हूँ जो मेरे लिस्ट में है और सोए हुए हैं। मेरे लाख टके की पोस्ट को न लाइक करते हैं न कमेन्ट करते है। क्या इसीलिए मैने उन्हें अपने ’लिस्ट’ में जोड़ा था। ऐसे फ़्रेंड को ढोने से क्या फ़ायदा। माटी के माधो न काम के धाम के । सोए है-सब के सब-आज मैं जगा तो देखा---।आज सबको ’अनफ़्रेंड’ करूँगा---।
भइए ! , जब आप ने उनकॊ अपने लिस्ट में शामिल किया था तब पूछ के जोड़ा था क्या--और जब उन्होने वाह वाह नहीं किया तो सरे आम चौराहे पर सबके सामने रुस्वा किया। कहीं मैं न लपेटे में आ जाऊँ मैं चुपके से खुद ही निकल आया ।
-"कौन बिजलियों की धमकियाँ सहता---"
खुद आशियाँ अपना जला दिया मैने ।
कुछ तो ऐसे हैं बस गुड मार्निंग-गुड नाइट करते रहते है } कुछ हैप्पी संडे--हैप्पी मंडे--’हैप्पी मध्याह्न; --हैप्पी शाम करते रहते है। अब हर घंटे घंटे वाला मेसेज बाक़ी है। कुछ त्यौहारी लोग है --हैप्पी होली --हैप्पी दिवाली,-- हैप्पी निर्जला एकादशी --ईद करते करते-- हैप्पी मुहर्र्म भी कर देते हैं। भाँति भाँति के लोग। कुछ सीजनल कवि है -- सीजन आते ही --मदर डे--फ़ादर डे -रोज़ डे- फ़्रेंडशिप डे पर तुरत-फ़ुरत 2-4 कविता लिख मारते हैं।~ ’वैलेन्टाइन डे’ के लिए तो मैं ख़ैर स्थायी कवि हूँ। पैदा ही इसीलिए हुआ हूँ, सौ सौ जूता खाय , कविता घुस के लिखेंगे वैलेन्टाइन डे पर। । कुछ -वन लाइनर- पोस्टबाज हैं । नो अनुशासन--नो शीर्षासन -। जैसे--आज मुझे छींक आ रही है---आज मुझे दिन में सपने आ रहे हैं-- आज मुझे दिन में तारे दिखाई दे रहें हैं--} 100-50 कमेन्ट इस पर भी आ ही जाते है। खाली बैठे लोग। दिलखुश हो जाता है। जिसको कुछ नहीं मिलता वह अपनी शादी का अलबम ही चढ़ाता रहता है। दुनिया क्या कहेगी। कैसा आदमी है -फ़ेसबुक’ सुख से वंचित है। कुछ लोग तो सेवा दरिद्र नारायण सेवा के नाम पर एक केला बारह हाथ वाली तसवीर चढ़ाते है--गरीब सेवा --भगवान की सेवा - फिर जय सियाराम। 100-50 कमेन्ट इसपर भी आ ही जातें हैं। भांति भाँति के लोग।
-कल एक सज्जन का दर्द छलक उठा फ़ेसबुक पर। लिखा---मेरी पोस्ट किसी को दिखती नहीं क्या? सब अंधे हो गए क्या। बीनाई कम हो गई क्या? काव्य बोध कम हो गया है क्या ? वाह वाह करना नहीं आता क्या? ’लाइक’ करना सिखाना पड़ेगा क्या? "
असर यह कि 5-मिनट में खटाखट फटाफट सैकड़ों लाइक आ गए। संभावित शाप के डर से मैने भी लाइक कर दिया।
सीधी उँगली से घी नहीं निकलता , सो ’टेढ़ी " कर दी तो छाछ से भी घी निकल आया --भाति भाँति के लोग। दूसरे दिन एक देवी जी बिफर उठीं-- लोग अंधे हो गए क्या--मेरी डी0पी0 नहीं दिखती क्या---मेरी साड़ी नहीं दिखती क्या---।
एक सज्जन का दर्द यह कि हिंदी के अब पाठक नहीं रहे । मै घबरा गया-- भाई साहब किस ’पाठक; की बात कर रहे है ? ।
मालूम हुआ कि वह मेरी नही ---आम पाठक की बात कर रहे हैं।और मै आम पाठक नहीं हूँ । हिंदी की दशा- दिशा की बात कर रहे हैं। हिंदी लेखन में पतन की बात कर रहे हैं हिंदी के गुणवत्ता की बात कर रहे हैं, पाठकों के उदासीनता की बात कर रहे है । उन्हे आसार अच्छे नहीं दिख रहे हैं ।बरबादी के आसार नज़र आ रहे हैं। हिंदी के सम्मान हेतु और दशा दिशा सही रहे , अब मैं बड़ी इमानदारी से उनका पोस्ट पढ़ता हूँ॥ वाह वाह भी कर देता हूँ और लाइक भी कर देता हूँ कि कहीं कोई कमी न रह जाए--हिंदी कहीं पदच्युत न हो जाए। कोई तो है जो हिंदी का झंडा बुलन्द किए हुए है। अगर वह कुछ न लिखते तो झंडा और बुलन्द रहता।
एक सज्जन हैं। ग़ज़ल तो कम लिखते हैं मार्केटिंग ज़्यादा करते हैं। 7- शे’र की ग़ज़ल में 72 लाइन की भूमिका बाँधते है। एक बार ऐसी भूमिका बाँधी कि भैस भी शरमा गई। भूमिका में लिखा --दोस्तो ! कल रिक्शे पर बैठ कर बाजार जा रहा था , देखा कि एक भैस, एक स्कूटीवाली से टकरा गई--ब्ला ब्ला ब्ला --एक ग़ज़ल हो गई --मुलाहिजा फ़रमाइए।---
खैर , ग़ज़ल क्या थी खुदा जाने । मगर पी0आर0 [ मार्केटिंग ] जबरदस्त था । मतलब साफ़ था --अरे शागिर्दो ! मेरे ग़ज़ल लेखन कीआशुप्रतिभा देखो । ग़ज़ल कहना तो मेरे बाएँ हाथ का खेल है । रिक्शे पर बैठे बैठे भी कह देता हूं।-आओ ग़ज़ल कहना सीखो । 2-4 चले भी आते है उनसे गज़ल सीखने--
वह तो उस भैस जी का धन्यवाद कि इनके रिक्शे से न टकराई वरना भाई साहब की सब ग़ज़ल क़ाफ़िया-- रदीफ़-- बह्र हवा में --और भाई साहब अस्पताल में---।
एक सज्जन तो उनसे भी आगे निकल गए। उन्होने अपनी मार्केटिंग इससे भी जबर्दस्त ढंग से की। अपनी ग़ज़ल की भूमिका में लिखा--"अहबाब-ए-महफ़िल ! कल रात 2 बजे वाशरूम के लिए उठा--पानी पिया तो एक ग़ज़ल हुई --आप भी लुत्फ़ अन्दोज़ हों। 1-2 ग़ज़ल तो मैं यूं ही सोते-जागते लिख देता हूँ-- अगर पानी की जगह "बोतल" होता तो---2-4 10 ग़ज़ल --। आइए ग़ज़ल कहना सीखें । 2-4 बंदे इनके पास आ भी जाते है। ---भाँति भाँति के लोग।
कुछ लोग दूसरे की जमीन पर ही खेती करते है अपनी गजल कहते है । लगता है उनकी जमीन बंजर हो गई है।
कुछ लोग दूसरो की फसल काट कर अपने वाल पर लगा देते फिर वाह वाह की झड़ी लग जाती है उनके पोस्ट पर
; हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता’- कितनी सुनाएँ-कहाँ तक सुनाएँ । आप लोगों ने भी सुना होगा-- देखा होगा ।
कल एक सज्जन ने मुझे फोन कर के बताया कि फ़ेसबुक पर 5000 से भी ज़्यादा शायर है -सब के सब कचड़ा लिखते है -सिवा उनके ।
"वसीम" साहब ने अपना शे’र यूँ ही नहीं पढ़ा होगा--
वो झूट बोल रहा था बड़े सलीक़े से
मैं ए'तिबार न करता तो और क्या करता ।
पता नही वह भाई साहब कौन सा ज्ञान कहाँ से खोज कर लाते हैं । फिर लगे हमें सुनाने- अपनी ’तथाकथित ग़ज़लें 1-2-3-4-5-
वह तो भगवत्कृपा थी कि मैं बेहोश होते होते बचा ।
-- --
और मैं ?
यार लोंगो ने मुझे भी "झाड़" पर चढ़ा रखा है --जिसे मैं "ताड़" से कम नहीं - और- ख़ुद को "ग़ालिब" से कम नही समझता।
अस्तु ।
-आनन्द.पाठक-
रविवार, 21 जुलाई 2024
एक व्यंग्य व्यथा 110/07 : --- -ताली बजा दो प्लीज़--
कवि-सम्मेलन, मुशायरों के खुले मंचों पर जो सुविधा कुछ कवियों, शायरों को सहज उपलब्ध है वह फ़ेसबुक ह्वाट्स अप मंचो पर नहीं । इसीलिए खुले मंच पर अदाओं से पढ़्ने वाले अजीम शायर वरिष्ठ कवि माने जाते हैं और पढ़ने वालियाँ वरिष्ठ कवयित्री और अजीज़ा शायरा मानी जाती हैं। मतलब जो दिखता है वो बिकता है ।कुछ लोग बिकते नहीं, अत: दिखते नहीं।
जो भाई लोग पीछे खड़े है वह आगे आ जाएँ कि उनकी भी तालियाँ सुनाई पड़े कि दिल को ठंडक पहुँचे। हम शायर कविगण तो इन्हीं तालियों के लिए जिंदा हैं , वाह वाह के चक्कर में सैकड़ॊ मील दूर यहाँ तक खीचे चले आते हैं । यही हम लोगों की संजीवनी है।इसी से जीते हैं । नहीं तो बिना वाह वाह के कविता सुनाने का क्या अर्थ , क्या जीना।
-प्यास ही मर गई जब भरी उम्र में---
अब अगली लाइन जो पढ़ने जा रहा हूँ --आप का समर्थन चाहूँगा आप ज़रूर वाह वाह करेंगे-- तालियाँ बजाएँगे। रोक न पायेगे अपने आप को ।न भी बजाएँगे तो भी बज उठेगी आप की तालियाँ ,अपने आप।
हाँ.अगली लाइन है---पहली बार सुना रहा हूँ -किसी सम्मेलन में आप ने नहीं सुनी होगी-- किसी ने ऐसी लाइन न लिखी है न लिख पाएगा, न सुनाई ~- न सुना पाएगा -- सुना रहा हूँ-लाख टके की लाइन है--सुने
प्यास ही मर गई जब भरी उम्र में---
बड़े अच्छे से सुन रहे है-आप लोग -पहली बार इतने अच्छे श्रोता देखे ज़िंदगी में-- ऐसे श्रोता तो अमेरिका दुबई में भी नहीं दिखे--रसिक लाल जी ने बड़ाअच्छा आयोजन किया कि कुछ कवयित्रियों को बुला लिया मुझे भी बुला लिया नदी नाव की जोड़ी--काव्य-रसिक है-सरस्वती पुत्र है --माँ शारदे की कॄपा है उनपर ।- हां~ तो -सुनिए
’प्यास ही मर गई जब------
वाह वाह की आवाज़ ज़रा कम आ रही है --तालियाँ ज़ोर से बजाइए--- । मेरी अगली लाइन पर जो श्रोता
ताली नही बजाएँगे --तो बताए देता हूँ अगले जनम में वह चौराहे चौराहे तालियाँ बजाते नज़र आएँगे --ध्यान से सुने --
प्यास ही मर गई जब भरी उम्र में --
क्या भाई साहब घर से खा कर नहीं आएँ है क्या? -- ज़रा ज़ोर से बजाएँ- ताली -वाह वाह करें कि यह हाल गूँज जाए-
:प्यास ही मर गई जब -----
एक बार मैं दुबई गया था कविता पढ़्ने--जाने का मन तो नही मगर आयोजकों ने इतना जिद किया कि जाना ही पड़ा। वहाँ--क्या हुआ कि --। अब कवि जी 5-मिनट दुबई आख्यान सुनाने लगे और बीच बीच में वह लाइन भी सुनाते जा रहे थे--
-प्यास ही मर गई जब भरी उम्र मे- आधे घंटे से एक ही लाइन सुनाए जा रहे थे।
"दो साल पहले मैं अमेरिका में कविता पढ़ने गया था--"-वहाँ--। अब वह 5-मिनट अमेरिकी आख्यान सुनाने लगे--
श्रोताओं ने सोचा जब तक यह तालियाँ , वाह वाह न सुन लेगा ---यह मुआ जाएगा नहीं। यही घुमा्ता रहेगा बार बार। अत: सभी श्रोताओं ने समवेत स्वर से --वाह वाह वाह वाह -क्या खूब- क्या-खूब-करतल ध्वनि से,--तालियाँ बजाई। वाह वाह मज़ा आ गया---
अब ये बादल भी बरसे न बरसे तो क्या---
मारे खुशी के पढ़ गए--
अब ये ताली बजे ना बजे भी तो क्या !
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कुछ दिनो बाद उन्हीं आयोजको ने एक कवि सम्मेलन में मुझे भी निमंत्रित किया कविता पढ़ने को।
आयोजक : आइए पाठक जी ! स्वागत है । आप के चरण-रज से यहाँ की धरा धन्य धन्य हो गई ।अपावन मतलब पावन हो गई।,आप के साथ यह भाई जी कौन है? कवि हैं ? कविता पढ़ेगे?
मैने कहा : नहीं । मिश्रा जी है। मित्र हैं। मंच से यह मेरे लिए " तालियां" और "दाद" माँगेगे । मैं ज़रा ख़ुद्दार किस्म का कवि हूं न- इसलिए इनको साथ रखता हूं~ । कुछ ’पत्रम-पुष्पम" इन्हें भी--- हेे हें हें- ।सन्तोषी जीव हैं।
-आनन्द.पाठक-
शुक्रवार, 1 मार्च 2024
एक व्यंग्य व्यथा 109/06 : वलेन्टाइन डे 2024: चौथी क़सम
[ नोट " वैलेन्टाइन डे [2024] के पहले-- जल्दी जल्दी अपनी -आँखे- बनवाई कि उस दिन नई नज़र से एक नज़र भरपूर ’उसे’ देख सकूँ।
वैलेन्टाइन डे [2024] के बाद------------लगता है कि अब - ’दो दाँत"-भी बनवाने पड़ेंगे।
एक व्यंग्य व्यथा : वलेन्टाइन डे 2024: चौथी क़सम
ग्रह नक्षत्र इधर से उधर हो जाएं, मगर वलेन्टाइन डे-उर्फ़ प्रेम प्रदर्शन दिवस- कभी इधर उधर नही होता । आएगा तो 14-फ़रवरी को ही। वह प्रेम क्या जो हिल जाए बदल जाए ।
हमारे यहाँ तो ऐसा कोई प्रेमी पैदा ही हुआ नही तो प्रेम- दिवस क्या मनाते । हमारे यहाँ जो प्रेम प्रसंग रहा वो आध्यात्मिक रहा संस्कारी रहा सात सात -जनम के साथ का रहा। सात दिन, सात महीने का होता तो मनाते भी । ले देकर लैला मजनू, शीरी फ़रहाद, सोहनी महिवाल का प्रेम रहा तो उनका कोई प्रेम दिवस न कोई मनाता है न बताता है ।चूँकि ’वेलेन्टाइन डे " अंगरेजो का बताया हुआ दिन है सो हम बड़ी श्रद्दा पूर्वक प्रेम पूर्वक मनाते हैं । जो सुख " वाशरूम" कहने में है वह गुसलखाना कहने में कहाँ !
अच्छा, वैलेन्ताइन डे यानी प्रेम प्रदर्शन दिवस भी अजीब डे है । कभी तो वह सरस्वती पूजा [ ज्ञान की देवी] से पहले आ जाता है तो कभी सरस्वती पूजा के बाद। कभी "ज्ञान मार्ग" पहले तो कभी प्रेम मार्ग पहले। ज्ञानीजन लक्ष्य प्राप्ति के लिए दोनो मार्ग को एक ही बताते हैं,मनाते हैं मगर "संस्कृति सेना" " संस्कार वाहिनी"वाले, पुलिस वाले कहाँ समझ पाते है और हर बार प्रेम में रोड़े अटकाने चले आते है।मगर इस बार [2024] का वैलेन्टाइन डे --ऐन सरस्वती पूजा , ज्ञान मार्ग वाले दिन पड़ गया और मेरे लिए एक धर्म संकट उत्पन्न हो गया । मैं जाऊँ तो जाऊं किधर जाऊँ, ज्ञानमार्ग कि प्रेम मार्ग। एक बार ,उद्धव जी यही ज्ञान मार्ग गोपियों को समझाने गए थे । क्या हुआ ? ख़ुद ही प्रेम मार्ग पर चलने लगे।
मैं एक सप्ताह पहले से ही तैयारी में लग गया। सरस्वती मैया ने जितना ज्ञान मुझे देना था दे दिया था विद्यार्थी जीवन में ।अब तो प्रेम मार्ग ही खोजना बाक़ी रह गया है ।आजकल हर प्रेम मार्ग किसी न किसी पार्क में जाकर खत्म हो जाता है। हर साल अपनी वेलेन्टाइन खोजना पड़ता है । हर साल इसी खोजने में लग जाता हूँ-~एक सप्ताह पहले से --फ़ेसबुक छानने खगाँलने लग गया ।सौभाग्य से या दुर्भाग्य से -एक मिल भी गई। बड़ी शिद्दत से चैट करने लग गया। सुबह -शाम-रात-दिन। वक़्त बहुत कम था।
चैट तो बहुत हुई ।लेकिन निजता पालिसी को ध्यान रखते हुए कुछ अंश ही लगा रहा हूँ कि पाठकगण भी यह समझ लें कि मेरा प्यार एक सप्ताह में ही प्रथम हिमालय से कितना उँचा ,समन्दर से कितना गहरा हो गया।
पहला दिन प्रथम स्तर की चैट--
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- " हेलो पिंकी जी -आप कैसी है ?
- मै ठीक। आप?
-मैं भी ठीक । पर मन नही लगता।
-क्यों ?
-आप बिना ज़िंदगी सूनी। शून्य आकाश में तारे गिन रहा हूँ } आप क्या कर रही हैं?
-मैं उन्हीं तारों को अपने दुपट्टे में टाँक रही हूँ
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एक अन्य दिन की चैट-
--पिंकी ! तुम कैसी हो?
--मैं ठीक। तुम क्या कर रहे हो अभी ?
--कुछ नहीं बस तुम्हारी याद बहुत आ रही है--बस तुम्हें ही दिन रात याद करता हूँ।
--चल झूठ्ठे !
-चल झूठ्ठी ! बड़ी नखरे मार री आज तो
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उच्चतम स्तर का चैट----
-पिंकी ! तू क्या कर रही है ?
--कुछ नहीं ।
-अच्छा सुन ! एक काम करते है। कल वैलेन्टाइन डे है । मिलते है पार्क में।
-कौन से पार्क में ?
-भूतहिया पार्क
--हट ! जब तुम हो तो भूतहिया पार्क क्यों ?
-- अरे पगली ! कल वैलेनटाइन डे है न -तो उधर संस्कार वाहिनी वाले जाते है --न पुलिसवाले।
पिंकी--ना बाबा ना -मैं उधर नहीं जाऊँगी। सेन्ट्रल पार्क में मिल न।क्या गिफ़्ट देगा । पहले बता दे । बाद में लफ़ड़ा ठीक नहीं
मैं -- सोच रहा हूँ आसमाँ से चाँद तोड़ कर तेरे आंचल में डाल दूँ
पिंकी-- हट ! मैं साड़ी थोड़े ही पहनती हूँ कि आँचल में--
मैं --कोई बात नहीं । तो तेरे दुपट्टे में टाँक दूँगा----- ओके अच्छा सुन ! कल न तू वो पीली वाली सूट पहन कर आना । जो डी0पी0
में लगाई है। पूरी एन्जिल लगती है एन्जिल ! प्रोमिस?
--तू भी न, नीला वाला सूट पहन कर आना --शाहरुख खान लगता है शाहरुख । प्रोमिस?
--हट ! तू बड़ी वो है
--तू बड़ा वो है ।
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अगर कोई सज्जन इस ’तू बड़ी वो है;-की अंगरेजी बता दे तो अगले साल इंगलिश में बोल कर ही इम्प्रेस करूँगा।
जब वार्ता "आप" से शुरू होते हुए --"तुम" से गुज़र कर --"तू" पर आ जाए तो समझिए प्यार परवान चढ़ रहा है । गूगल बाबा बता गए है।
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मैं सेन्ट्रल पार्क में नियत समय से एक घंटा पहले ही पहुँच गया और वह एक घंटा बाद आई। यह ब्र्ह्मा जी का श्राप है कि कोई लड़की
तय समय पर मिलने नहीं पहुँचती । देर से आती है और गाते हुए आती है -खफ़ा न होना--देर से आई -दूर से आई मजबूरी थी-वादा तो निभाया----।
फिर भी लड़के को कोई शिकायत नहीं होती । लड़के धैर्यवान होते हैं।
दूर से देखा । वह आ रही है । यू-ट्यूब वालो ने मुझे समझाया था कि जब लड़की मिलने आए तो -’मुँह घुमा कर, मुँह फ़ुला कर "- बैठ जाना । उसे यह न पता चले कि तुम बहुत उत्सुक और आतुर हो ।अत: मैं बेन्च पर मुंह घुमा कर बैठ गया ।
वो पास आ गई और उसने जैसे ही मेरे कंधे पर हाथ रखा और जैसे ही मैने मुँह उसकी तरफ़ घुमाया कि-- मुझसे पहले वह चौंक गई ।
गुस्से में पैर पटकते हुए बोली--अरे! तू ! स्साले कंजड़ ! खूसट ! इस साल फ़िर तू ! यू चीटर ----
-- तू चिटरनी! फिर आ गई । टकली ---बड़ी भाव खा री है
उसने कहा ---लास्ट इयर कहा था यह हार तुम्हारे लिए है ,सोने का है } यू फ़्राडिये ! पीतल का निकला । नॊट दिया था कि शापिंग कर लेना--साला जाली नोट थमा कर निकल लिया।
वो तो अच्छा हुआ कि मेरे दूसरे लल्लू ब्वाय फ़्रेन्ड ने पेमेन्ट कर दिया -- मैं पकड़ाते पकड़ाते बची--स्साले !कजूस इतना कि 100/- रुपए का कैंडी खिला कर मेरी 430./-
की लिपस्टिक खराब कर दी --
-- अरे तो तू कौन सी --चार चार ब्वाय फ़्रेंड लेकर घूमती है --
-यू शट- अप !
--क्यूँ शट-अप ? यू शट अप--
फिर उसने अपनी "सैंडिल -प्रहार" से मुझे शट अप करा दिया । बाक़ी बचा-खुचा शट-अप पुलिस ने करा दिया । और मैं सीधे घर वापस आ गया ।
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श्रीमती जी ने दरवाज़ा खोला --अरे! मुँह पर रुमाल ! मुँह पर रुमाल क्यों?
-अरे कुछ नहीं } वो सामने वाले दो दाँत उखड़वाने थे न डेन्टिस्ट से ..
श्रीमती जी ने सेंक वग़ैरह लगाई पेन किलर दिया तो कुछ आराम आया । फिर मुस्करा कर बोली --मना आए वैलेन्टाइन डे !
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भगवान कसम दर्द की एक ऐसी टीस उठी कि हृदय में ज्ञान ज्योति जग गई । आत्मा ने कहा--हे मूढ़ प्राणी ! कस्तूरी कुंडल बसे --मॄग ढूँढे बन माहि।
घर में ही वैलेन्टाईन डे मना लेता जी भर-व्यर्थ ही इधर उधर मुंह मारता फ़िरता है-क्या हुआ अगर यह वेलेन्टाइन मँहगी है--हीरे का ही तो हार मांगती है--दाँत तो नही तोड़ती ।
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राजकपूर साहब ने "तीसरी कसम" में तीसरी कसम खाई थी --अब अपनी बैलगाड़ी में किसी बाई जी को लेकर --कभी -
और आज मैने चौथे वेलेन्टाइन डे पर चौथी कसम खाई ---अब किसी ’फ़ेसबुकिया लड़की ’ का डी0पी) देख कर --कभी --अपना वैलेन्टाइन नहीं बनाऊँगा ।
[ कथा सार --जब प्यार की बात ’आप "आप" से शुरु होकर---"तू तड़ाक" पर खत्म हो जाए तो समझ लीजिए कि ’प्यार की सर्किट’ फ़ुँक गई]
-अस्तु
-आनन्द.पाठक-