रविवार, 23 अक्तूबर 2016

व्यंग्य 47 : अन्तरात्मा की पुकार

एक लघु व्यथा: अन्तरात्मा की पुकार ...[व्यंग्य]

--’अलाना सिंह’ अपनी पार्टी छोड़   ’ ’फ़लाना पार्टी में शामिल हो गए।

      बीती रात जब वो सो रहे थे तो उनकी अन्तरात्मा एकाएक जाग गई । ऐसी ही  अन्तरात्मा एक बार बाबू जगजीवन राम जी की भी जगी थी कि कांग्रेस छोड़ दिया था और तब से  ’आया राम ,गया राम, चल पड़ा।तत्पश्चात कई लोगों की अन्तरात्मा जगने लगीऔर वोअपना दल छोड़ सामने वाले दल में जाने लगे इस उम्मीद से कि वहाँ उनकी अन्तरात्मा को कोई पद मिल जाये...कुर्सी मिल जाए  तो आत्मा को   शान्ति मिल जाए। एक मित्र ने पूछा -जब कोई पुरुष दल-बदल करता है तो ’आया राम गया राम’ कहते हैं परन्तु जब एक महिला नेत्री दल बदल करती है तो उसे क्या कहते हैं ? मैने कहा "--आई रीता,गई गीता । रीता माने ’खाली’, हाथ कुछ भी नहीं ।-कई वर्षों तक पार्टी की अथक सेवा करने के बाद भी कोई लाभकारी पद न मिले ...मुख्यमंत्री की कुर्सी न मिले ...किसी संस्था का अध्यक्ष पद न मिले तो ’आत्मा’ बेचैन हो जाती है  और जग जाती है ।  उनकी  आधी रात को जग गई । कोसने लगी ’-हे मूढ़ पुरुष !  ।  एक ही पार्टी की विचारधारा वर्षों से धारण करते करते तेरे वस्त्र मैले हो गए ..जीर्ण-शीर्ण हो गए -यत्र तत्र से फट फटा गए हैं जिस समाजवाद को तू सीने से चिपकाए  फिरता है वो तो छ्द्म समाजवाद है .तेरा समाजवाद तेरे घर से उठ कर तेरे भाई ,तेरे पुत्र ,तेरी पुत्र-वधू ,तेरे भतीजे ,तेरे भांजे तेर साले से घूम फिर कर तेरे नाती पोतो तक  आ जाता है ।क्या तेरा ’सेक्यूलिरजम’ झूठा नहीं है? छद्म नहीं है ? रोज़ा में इफ़्तार पार्टी  देता है , अयोध्या में ’हनुमान गढ़ी जाता है.....  गुरुद्वारा में सरोपा ग्रहण करता है .... वोट बैंक में सेंध लगाता है ...किसलिए ..कुर्सी के लिए न .।क्या ..तेरा सर्वधर्म समभाव ..... का नारा कुर्सी के लिए नही है ? वोट के लिए नहीं होता  ....।वोट के लिए ..जालीदार टोपी लगा लेता है ...तिलक भी लगा लेता है...तराजू भी  तौल लेता है ...तलवार वालों को जूते भी मार देता है । क्या  वर्षों से तू अपने आप को नहीं छल रहा है ?  उठ ! छोड़  यह पार्टी ..तेरी दाल अब तक नहीं गली तो आगे भी नहीं गलेगी। हाशिये पर आ गया है तू ।  पार्टी का झंडा अपनी साईकिल पर लगाए कब तक चलेगा ।कब तक पार्टी अधिवेशन में जाजिम बिछायेगा...दरी उठायेगा ..पानी पिलायेगा ,,,खाली पेट सेवा करता रहेगा ।जब  फल मिलने का समय आता है तो  हाइ-कमान ’बाहर’ से भेज देता है किसी ग़ैर को पार्टी की सेवा करने का और तू ठगा ठ्गा सा रह जाता है ।उतिष्ठ मूढ़ ! उतिष्ठ ! छोड़  यह पार्टी ...यहीं सड़ेगा क्या....

अब उनकी अन्तरात्मा जग चुकी हैअब सब कुछ साफ़ साफ़ दिखाई देने लगा  है । आत्मा निर्मल हो चुकी है । पुरानी पार्टी में छिद्र ही छिद्र था । कितनी मैली-कुचैली थी पुरानी पार्टी -कितनी दुर्गन्ध भर गई है वहां । कैसे रहा इतने दिन तक इस सड़न्ध में  कि जानवर भी न रहे ।कितनी संवेदनहीन थे वे लोग ...मेरे खून को खून न समझ सके....मेरे पसीने को पसीना न समझा । हाई कमान से मिलने का समय माँगो तो समय नहीं मिलता राजकुमार जी से मिलने का  तो सवाल ही नहीं। घुटन थी उधर .......अपने नेतॄत्व तो करते नहीं ...हमें करने नहीं देते ....बस जाजिम बिछाते रहो,,,दरी उठाते रहो...पानी पिलाते रहो...

 अटकले लगती है ।खबर चलती है ,नाटक चलता है ।नहीं नहीं... मैं  नहीं जा रहा हूँ ...मैं कहीं नहीं जा रहा हूँ ....सब मीडिया की साजिश है,,,,मैं तो पार्टी का अनुशासित सिपाही हूं ....पार्टी जो दायित्व सौपेंगी निष्ठा के साथ निभाऊँगा...मुझे मुख्यमंत्री बनने की  कोई इच्छा नहीं ...मैं तो पार्टी की सेवा के लिए पैदा हुआ हूँ ..वफ़ादार सेवक हूँ ....पार्टी की ऐसे ही सेवा करते करते मर जाऊँगा ...मेरी हर एक साँस देश के लिए है... पार्टी के लिए है...गरीबों के लिए है ..दलितों के लिए हैं..मज़दूरों के लिए है ...किसानों के लिए  ......मै तो बस देश हित के लिए साँस धारण किए हुए हूं।

उनकी साँस तो जवाब नहीं देती हैं ,अनुशासन जवाब दे जाता है और एक दिन सुबह उठ कर किसी अधो वस्त्र की तरह विचारधारा बदल देते है  !’वासांसि जीर्णानि यथा विहाय ,नवानि गृहणाति नरोपराणि.....
और फिर अचानक , अलाना पार्टी का ’हाथ’ छोड ’फ़लाना’ पार्टी का ’फूल’ थाम लेते हैं  ......रात-ओ-रात विचारधारा बदल लेते हैं ..सोच बदल लेते है ... संस्कार बदल लेते है... स्वयं हित के लिए नहीं ..परिवार हित के लिए  ...कुर्सी के लिए ...सत्ता सुख के लिए.
चुनाव काल में ऐसे ’आया राम गया राम ’को  लालू जी ’मौसम वैज्ञानिक’ की संज्ञा देते है । वह ’राम’ समझदार है जो चुनाव काल में मौसम का ,हवा का रुख देख कर पाला बदल लेता  है।
कुर्सी में गुन बहुत है ,सदा राखियो ध्यान
उड़ो हवा के संग सदा ,यह मौसम विज्ञान
ये मौसम विज्ञान , ’विचार’ की ऐसी तैसी
अपने ’राम’ चले जिधर मिल जाए ’कुर्सी’

जनता को छकने-छकाने के बाद ,अन्तत: घोषणा हो गई -अलाना सिंह’ अपनी पार्टी छोड़ ’फ़लाना’ पार्टी में शामिल हो गए।
 मंच सजाए जाने लगे ,स्वागत की तैयारियां की जाने लगी ...माला फूल मँगाए जाने लगे... इत्र-फुलेल छिड़के जाने लगे ,...केवड़ा जल का छिड़काव जारी है  .हाथ में ’कमल’ का फूल थमाना है .....’अलाना सिंह’ कह चुके हैं कि पुरानी पार्टी में काफी दुर्गन्ध है ।अगर   पुरानी पार्टी से वह कोई ’दुर्गन्ध’ साथ लाते हैं  तो नई पार्टी में न फ़ैले। ।पुरानी पार्टी को ज़ोरदार झटका दिया है तो स्वागत भी ज़ोरदार होना चाहिए।
प्रेस कान्फ़्रेन्स में ’ए बिग कैच मछली " प्रस्तुत किया गया --देखो प्रेस वालों ... अन्य पार्टी वालों -क्या तीर मारा है मैने

पत्रकार -  अलाना सिंह जी ! आप ने नई पार्टी क्यूँ ’ज्वाईन’ की। क्या देखा  इस में  ऐसा कि रात-ओ-रात ...?
अलाना सिंह- ’  देखो भई ! मेरे रग रग में देश भक्ति कूट कूट कर भरी है। हम खानदानी ’देशभक्त हैं ...जिधर देश भक्ति उधर मैं....देश पहले है ,पार्टी बाद में ,विचारधारा उसके बाद में और मैं तो सबसे बाद में । मुझ से किसान भाईयों का दर्द देखा नहीं जा रहा था -जिन ग़रीब किसान भाईयों के हाथ में ’ सिंहासन ’ सौपना था,  आप ने ’’खाट’  सौंप दिया और वह भी ’झिलंगी’ --यह किसान भाईयों का ही नहीं बल्कि ’खाट" का भी अपमान है ।मुझ से यह अपमान देखा नहीं जा सका सो इधर चला आया।मेरे देश के जवान सीमा पर अपने प्राण न्योछावर कर रहे हैं... हमारी  बहने विधवा हो रही है  ..कलाईयां सूनी हो रही है  ...और कोई कहे कि ’खून’ की दलाली है ..मैं आहत हो गया...सो इधर चला आया....
पत्रकार - मगर यह बयान तो महीना भर पहले आया था...तब तो आप ने पार्टी नहीं छोड़ी
अलाना सिंह -- तो क्या हुआ ? जब समझ में आया तब छोड़ी ,..
पत्रकार - मगर आप के पुराने साथी तो कह रहे हैं कि आप ’दगाबाज’ है?
-ठीक ही कह रहे होंगे।दगाबाजी -का मतलब  उनसे ज़्यादा और कौन समझता होगा । जब वो साईकिल के पीछे पीछे दौड़ रहे थे और पीछे कैरियर पर बैठने की जगह नहीं मिली तो ’हाथ’ पर आकर बैठ गए तब दगाबाजी नहीं दिखी
लोग कहते हैं कि मैं हाशिए पर आ गया था । भईए ! पार्टी का सच्चा सिपाही तो हाशिए पर ही रहता है ....पार्टी के मुख्य में तो जुगाड़ी  ...दरबारी...चमचे ..चरणस्पर्शी ...दण्डवती ..रहते है --उन्होने एक दीर्घ उच्छवास छोड़ते हुए अपना दर्द उडेला ।

तमाम उम्र  कटी पार्टी की सेवा करते 
आखिरी वक़्त में क्या खाक ’जुगाड़ी’ बनते 

-अलाना भईया की जय ...फलाना पार्टी की जय ...जिन्दाबाद ..जिन्दाबाद ...भईया जी संघर्ष करो....हम तुम्हारे साथ हैं--वन्दे मातरम -समर्थको ने नारा लगाया

अलाना सिंह  मुस्करा दिए--डूबते को तिनके का सहा्रा न सही ....तो ’कमल’ का डंठल ही सही।

अस्तु

-आनन्द.पाठक-
  

गुरुवार, 20 अक्तूबर 2016

व्यंग्य 46 : खाट...खटमल...खून

एक लघु व्यथा  : खाट...खटमल....खून...[व्यंग्य]

[नोट -आप ने ’बेताल-पच्चीसी’ की कहानियाँ ज़रूर पढ़ी होंगी जिसमें राजा विक्रमादित्य जंगल में , बेताल को डाल से उतार कर,और कंधे पर लाद कर  चलते हैं और बेताल रास्ते भर एक कहानी सुनाते रहता है ।बेताल  शर्त रखता है कि अगर राजा  ने रास्ते कुछ बोला तो वह  उड़ कर  डाल पर जा कर लटक जायेगा.....
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 ......................राजा विक्रमादित्य  ,बेताल को डाल से उतार कर चलने लगे ।
-बेताल ने कहा-हे विक्रम !- रास्ता लम्बा है तू थक जायेगा .चलो  मैं तुझे एक कहानी सुनाता हूँ..
राजन चुप रहे
’तो सुन ’
राजन चुप रहे
प्राचीन काल में एक राजा थे  जिसकी कई पीढ़ियों ने राज्य पर शासन किया } अभी राजकुमार का राज्याभिषेक भी नहीं हुआ था  कि राजा के हाथ से  सत्ता  निकल गई ।और वह सत्ता विहीन हो गए। ।राजा के पुराने वफ़ादार और दरबारी चाहते थे कि किसी प्रकार राजकुमार जी का राज्याभिषेक हो जाए ...सत्ता सम्भाल लें तो हम सब भी वैतरणी पार कर लें। वे  हर प्रकार से उन्हें आगे ठेलने की कोशिश कर रहे थे कि राजकुमार जी आगे बढ़े गद्दीनशीन हो जायें परन्तु  राज कुमार जी ऐसे कि आगे बढ़ ही नहीं पा रहे हैं।वह कोशिश तो बहुत कर रहे थे ।समर्थकों ने नारा भी लगाया कि भईया जी आप आगे बढ़ो हम तुम्हारे साथ है .जब तक सूरज चाँद रहेगा ,भईया जी का नाम रहेगा ,सबका साथ ..भईया जी का हाथ .,.परन्तु  भईया जी वहीं के वहीं रह जाते ...जब लोग ज़्यादे ज़ोर लगा कर ठेलते थे तो राजकुमार जी 2-3 महीने के लिए ’गुप्तवास " में चले जाते थे फिर उनके समर्थक उन्हें खोजते फिरते थे । किसी ने अगर भईया जी से आगे निकल कर नेतॄत्व करना चाहा तो कुछ दरबारी लोग  उसे पीछे ठकेल देते थे  राजकुमार जी के रहते तुम्हारी ये मजाल .....जिसने कोशिश की उसको पीछे ठकेल दिया .गया ....भईया जी के पीछे ..।और इस प्रकार राजकुमार  जी आगे -आगे चलते रहे...बस चलते ही रहे ...
.
कुछ सलाहकारों ने सलाह दिया कि राजकुमार जी को अगर फ़र्श से अर्श तक उठाना है ..सिंहासन पर बैठाना है तो पहले "खाट’ पर बैठाना होगा...

-’विक्रम ! खाट तो समझता है न ।खाट को ’खटिया’ चारपाई ,,शैय्या भी कहते हैं हैं । ’फ़ेसबुक’..वाली पीढ़ी  संभवत: ’खटिया ’नाम से परिचित न हो ,मगर -’सरकाय लो खटिया जाड़ा लगे’- से ज़रूर परिचित होती है ।जाड़े में खटिया की उपयोगिता ज़रूर समझती  है ,’सरकाने के काम आती है --’सरकाने’ की सुविधा सिर्फ़ खटिया में ही है --’किंग साइज़’.और .क्वीन साइज़ बेड में   नहीं । क्वीन साइज़ बेड को ’सरकाने’ की सुविधा नहीं होती है- खुद ’सरकाने”की सुविधा होती है
खाट का हमारे जीवन से क्या संबन्ध है तू तो जानता ही होगा। जन्म से लेकर कर मॄत्यु तक . ..जीवन के साथ भी..जीवन के बाद भी...बिल्कुल जीवन बीमा निगम की तरह ..जीवन के बाद . दान करते है  खाट  --किसी  महापात्र को।खाप पंचायत के ताऊ जी इसी खटिया  पर बैठ कर हुक्का गुड़गुड़ाते है ..... हुकुम सुनाते है और समाज की इज्जत बचाते हैं...।
खाट है तो खटमल भी होगा । खटमल न देखा हो तो देवानन्द की  फ़िल्म ,’छुपा रुस्तम’  देख लेना -"धीरे से जाना ’खटियन’ में ..ओ खटमल ...धीरे से जाना खटियन में । जिसमे देवानन्द जी खटमल को उकसा  रहे हैं जा बेटा जा खटियन में और हीरोइन का खून चूस ..मेरी तो वो सुनती नहीं है , तू ही जा सुना ।
अब खटमल है तो खून चूसेगा ही ...धीरे धीरे चूसे , जोर से चूसे...बार बार चूसे.   या 5-साल में एक बार चूसे . छुप छुप के चूसे या सरेआम चूसे ...मगर चूसेगा  ज़रूर खून। ज़रूरी नहीं कि ’गाँधी-टोपी’ लगा कर ही चूसे  । राजनीति में भी बहुत खटमल पैदा हो गए हैं और हमारी खाटो में घुस गए हैं ..चैन से सोने भी नहीं देते

सलाहकारों ने सलाह दिया कि राजकुमार जी को अगर सिंहासन पर बैठना है तो पहले "खाट’ पर बैठना होगा...पी0के0 साहब इस रहस्य को जानते हैं । सलाह दे दिया ’खाट पंचायत: करो..खाट पर चर्चा करो  ..यही ’खाट’- विरोधी पार्टी की नाक काटेगी। अब तो खाट पर ही भरोसा रह गया । जनता का क्या है ...खटिया बिछा दी तो बिछा दी..नहीं तो  खड़ी कर दी  ....दिल्ली  में एक पार्टी के लिए बिछा दिया तो बिहार में दूसरी पार्टी की   खड़ी कर दी। जनता का  क्या है --’किसी को तख्त देती है ,किसी को ताज देत्ती है  ..बहुत खुश हो गई जिस पर उसी को राज देती है "वरना खाज देती है । इसी से चुनाव वैतरणी पार हो जाये शायद ,अब तो इसी खाट का  भरोसा है ,जनता पर  भरोसा नहीं  ।

घोषणा हो गई ’खाट’  पर चर्चा  की ।..जगह जगह खाट बिछाए जाने लगे ...जहां जहाँ  चुनाव है वहीं खाट  बिछाना है ..फ़ालतू में खाट तुड़वाने का नहीं। खाट का टेन्डर होने लगा ..सप्लाई ली जाने लगी..सप्लायर्स गदगद हो गए ...खाट पहुँचाए जाने लगे विधान सभा क्षेत्रों  में.... जनता आयेगी ..... खाट पर बैठेगी--हम. सपने बेचेंगे....मुफ़्त में पानी ...मुफ़्त में बिजली ... किसानो का कर्ज माफ़ करेंगे.... हम जानते है कि जनता ’मुफ़्त खोर’ हो गई है ..यही भुनाना है...जनता ग्राहक है  और हम सौदागर । ग्राहक देवता होता है ...देवता को आसन देना है  ,,,सो  खाट का आसन दे दिया ..आप आओ ...हमारे  वादे सुनो ...आराम से.खाट पर बैठ कर ...आधे घंटे में हमें सुनना है आप का दर्द ...आप की समस्या ..आप के कष्ट... फिर 5-साल के लिए आप निश्चिन्त हो जायें .हम आप की सेवा करेंगे अगले 5-साल तक .  ...बस समझें  कि आप का कष्ट हमारा कष्ट ..हमारा ’हाथ’-आप के साथ...न हो तो दिल्ली वालों से पूछ लें,,,,हो सकता है कि आप को मुफ़्त में कोई भाई साहब साइकिल दे.दे..मोबाईल फ़ोन दे,दे,,,लैप टाप दे दे .कोई बहन जी हाथी भी दे दें ... कुछ टट्पूजिया पार्टी मुफ़्त में दवा दारू की बोतल  भी दे.दें......विरोधी कम्पनी के झाँसे में न आइएगा . नकली माल बेचते है सब के सब  ,नक्कालों से सावधान ... नकली माल से बचें.....और आगामी चुनाव में ’हमारा ’ खयाल’ रखें ...

खाट पंचायत पूरी हुई । नेता जी उड़ कर दूसरी जगह खाट बिछाने चले गए } जनता मुँह देखती रह गई फिर वही खाट उठा कर घर ले गई ।कुछ लोग तो खाट तोड़ कर पाटी पाया भी साथ ले गए।
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 तो हे विक्रम ! अब तू मेरे सवाल का जवाब दे कि जनता  खाट लूट कर क्यों ले गई और कुछ लोग खाट तोड़ तोड़ कर क्यों ले गए । बता ..तू तो बड़ा ज्ञानी है.. न्याय करता है... न्यायी बने फिरता है ,,,
राजा विक्रमादित्य चुप रहे
;बता कि जनता  ने खाट क्यों लूटी ???? ,...जवाब दे नहीं तो तेरे सर के टुकड़े टुकड़े कर दूँगा....
राजन सहम गए . बेताल का क्या भरोसा ...कही सचमुच ही न सर के टुकड़े कर दे ।

 अत: बोल उठे-"हे बेताल ! तो सुन ! जनता भोली थी मगर  हुशियार थी ..हर बार "पितृ-पक्ष में कौआ-पूजन"..देखती है ...राजकुमार की बातों का भरोसा नहीं  .पता नहीं राज्याभिषेक होगा भी कि नहीं ..अत: नौ नगद ,न तेरह उधार ,,,जो हाथ लगा वहीं नगद...सो जनता ने खाट लूट ली और घर चलते बनी  .एक बात और ,  5-साल ये खटमल धीरे धीरे  खटियन में घुस जायेंगे और  धीरे धीरे खून चूसेंगे।चैन से सोने भी नहीं देंगे  अत: ...’न रहेगी खाट ,न रहेगा खटमल ,न चूसेंगे  खून" -न रहेगा बाँस ,न बाजेगी बँसुरी ....

-तो फिर कुछ लोगो ने खाट क्यों तोड़ा ? -बेताल ने पूछा
-हे बेताल ! कुछ गरीब किसानों के घरों  में कई दिनों  से ’चूल्हा नहीं जला था ,सो उसे लकड़ी की ज़रूरत थी कि पेट की आग बुझाने के लिए ..चूल्हा जला सकें । भाषण से ...वादों से...नारों से .. पेट की आग नहीं बुझती ,,...चूल्हे का जलते रहना ज़रूरी है अत:  उसने खाट को तोड़ कर लकड़ी की व्यवस्था....
-हे विक्रम !तू तो बड़ा ज्ञानी है ,परन्तु  तूने एक ग़लती कर दी.... शर्त तोड़ दी,,,तू बोल उठा...और .यह ले... मैं चला उड़ कर..
..... और एक बार फिर बैताल डाल पर जा कर उल्टा लटक गया


-आनन्द.पाठक-


सोमवार, 10 अक्तूबर 2016

व्यंग्य 45 : : सबूत चाहिए ..

एक लघु व्यथा : सबूत चाहिए.....[व्यंग्य]

विजया दशमी पर्व शुरु हो गया । भारत में, गाँव से लेकर शहर तक ,नगर से लेकर महानगर तक पंडाल  सजाए जा रहे हैं ,रामलीला खेली जा रही है । हर साल राम लीला खेली जाती है , झुंड के झुंड लोग आते है  रामलीला देखने।स्वर्ग से देवतागण भी देखते है रामलीला -जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी" की । भगवान श्री राम  स्वयं सीता और लक्षमण सहित आज स्वर्ग से ही  दिल्ली की रामलीला देख रहे हैं और मुस्करा रहे हैं -  मंचन चल रहा है !। कोई राम बन रहा है कोई लक्ष्मण कोई सीता कोई जनक।सभी स्वांग रच रहे हैं ,जीता कोई नहीं है।स्वांग रचना आसान है ,जीना  आसान नहीं। कैसे कैसे लोग आ गए हैं इस रामलीला समिति में । कैसे कैसे लोग चले आते है  उद्घाटन करने । जिसमें अभी ’रावणत्व’ जिन्दा है वो भी राम लीला में चले आ रहे हैं  ’रामनामी’ ओढ़े हुए ।...लोगो में ’रामत्व’  दिखाई नहीं पड़ रहा है ।फिर भी रामलीला हर साल मनाई जाती है ...रावण का हर साल वध होता है  और  फिर  पर्वोपरान्त जिन्दा हो जाता है । रावण नहीं मरता। रावण को मारना है तो ’लोगो के अन्दर के रावणत्व’ को मारना होगा ...रामत्व जगाना होगा...
भगवान मुस्कराए

इसी बीच हनुमान जी अपनी गदा झुकाए आ गए और आते ही भगवान श्री राम के चरणों में मुँह लटकाए  बैठ गए। हनुमान जी आज बहुत उदास थे। दुखी थे।
आज हनुमान ने ’जय श्री राम ’ नहीं कहा - भगवान श्री राम ने सोचा।क्या बात है ?  अवश्य कोई बात होगी  अत: पूछ बैठे --’ हे कपीश तिहूँ लोक उजाकर  ! आज आप दुखी क्यों  हैं ।को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो  । आप तो स्वयं संकटमोचक हैं ।आप पर कौन सी विपत्ति आन पड़ी  कि आप दुखी हैं ??आप तो  ’अतुलित बलधामा’ है आज से पहले आप को कभी  मैने उदास होते नहीं देखा ।क्या बात है हनुमन्त !
भगवान मुस्कराए

-अब तो मैं  नाम मात्र  का ’अतुलित बलधामा’ रह गया ,प्रभु ! बहुत दुखी हूं । इस से पहले मै इतना दुखी  कभी न हुआ ।। कल मैं धरती लोक पर गया था दिल्ली की राम लीला देखने । वहाँ  एक आदमी मिला......सबूत मांग रहा था.....
अरे!  वही धोबी तो नही था अयोध्या वाला ?- भगवान श्री राम ने बात बीच ही में काटते हुए कहा-" सीता ने तो अपना ’सबूत’  दे दिया था..
नही प्रभु ! वो वाला धोबी  नहीं था ,मगर वह आदमी भी  काम कुछ कुछ वैसा ही करता है ..- धोता रहता है  सबको रह रह कर ।वो सीता मईया का नही ,मेरे "सर्जिकल स्ट्राईक" का सबूत माँग रहा था
""सर्जिकल स्ट्राईक" और आप ? कौन सा , हनुमान ??-भगवान श्री राम चौंक गए
 ’ स्वामी ! वही  स्ट्राईक ,जो लंका में घुस कर 40-50 राक्षसों को मारा था...रावण के बाग-बगीचे उजाड़े थे..अशोक वाटिका उजाड़ दी थी ...लंका में आग लगा दी.....  रावण के सेनापति को पटक दिया था । अब आज एक  आदमी ’सबूत’ माँग रहा है...
उधर लंका में सारे राक्षस गण जश्न मना रहे ,,,,..,नाच रहे है..... गा रहे हैं ..ढोल-ताशे बजा रहे है ..लंकावाले कह रहे हैं कि  सही आदमी है  वह ....ग़लत जगह फँस गया है ...माँग रहे हैं  उसे । कह रहे हैं  लौटा दो अपना  आदमी है....,भेंज दो उसे  इधर...
भगवान मुस्कराए

’हे महावीर विक्रम बजरंगी ”- भगवान श्री राम ने कहा -"तुम्हारे पास तो ’भूत-पिशाच निकट नहीं आवें तो यह आदमी तुम्हारे पास कैसे आ गया . ..तुम उसी आदमी की बात तो नहीं कर रहे हो ..जो हर  किसी की ’डीग्री ’ का सबूत माँगता है  --किसी का सर्टिफ़िकेट माँगता है...जो -"स्वयं सत्यम जगत मिथ्या" समझता है अर्थात स्वयं को सही और जगत को फ़र्जी समझता है --तुम उस आदमी की तो बात नहीं कर रहे हो जिसकी जुबान लम्बी हो गई थी और डाक्टरो ने काट कर ठीक कर दिया है
हे भक्त शिरोमणि ! कहीं उस आम आदमी की तो बात नहीं कर रहे हो जो सदा गले में ’मफ़लर’ बाँधे रहता है और जब भी ’झूठ-वाचन’ करता है तो ’खाँसता- खँखारता’ रहता है
’सही पकड़े है ’-हनुमान ने कहा
-हे हनुमान ! तुम उसी आदमी की बात तो नहीं कर रहे हो जिसकी सूरत मासूम सी है.....
-बस सूरत ही मासूम है..प्रभु !- हाँ ..हाँ  प्रभु !वही ।........कह रहा था लंका में कोई "सर्जिकल स्ट्राईक"  हुई ही नही ।वह तो सब ’वाल्मीकि ,तुलसीदास ,राधेश्याम रामानन्द सागर का  ’मीडिया क्रियेशन’ था वरना कोई एक वानर इतना बड़ा काम अकेले कर सकता है और वो भी लंका में जा कर ...कोई सबूत नहीं है ...सारे कथा वाचको ने .पंडितों ने.....रामलीला वालों ने साल-ओ-साल यही दुहराया मगर ’सबूत’ किसी ने नही दिया । प्रभु ! अब वह सबूत माँग रहा है
 भगवन ! अगर मुझे मालूम होता कि वह व्यक्ति मेरे "सर्जिकल स्ट्राईक" का किसी दिन सबूत माँगेगा तो रावण से  ’सर्टिफिकेट’ ले लिया होता -भईया एक सबूत दे दे इस लंका-दहन का । नहीं तो  अपनी जलती पूँछ समुन्दर में ही नहीं बुझाता अपितु वही जलती हुई पूँछ लेकर आता और  दिखा देता -दे्खो ! यह है ’सबूत’
भगवान मन्द मन्द मुस्कराए और बोले--नहीं हनुमान नहीं । ऐसे तो उसका मुँह ही झुलस जाता
भगवन ! उसे अपना मुँह झुलसने की चिन्ता नहीं .अपितु सबूत की चिन्ता है ,,,अगले साल देश में कई जगह चुनाव होना है न

इस बार भगवान  नहीं मुस्कराए ,अपितु गहन चिन्तन में डूब गए...
प्रभुवर ! आप किस चिन्ता में डूब गए ? -हनुमान जी ने पूछा
हे केशरी नन्दन! कहीं वो व्यक्ति कल यह न कह दे कि ’राम-रावण’ युद्ध हुआ ही नहीं  था ,,तो मैं कहाँ से सबूत लाऊँगा ???मैनें तो ’विडियोग्राफी भी नहीं करवाई थी ।
अस्तु

-आनन्द.पाठक-

शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2016

व्यंग्य 44 : -मुज़रिम हाज़िर हो ..

एक लघुव्यंग्य व्यथा   : मुज़रिम हाज़िर हो....

"अलाना.पाठक पुत्र  फ़लाना पाठक परगना ठिकाना जिला  चिलाना  वर्तमान  निवासी गुड़गाँव.....हाज़िर हो"- अर्दली ने अदालत के बाहर आवाज़ लगाई
’अबे ! शार्ट में नहीं बोल सकता  क्या..? पूरे खनादान को लपेटना ज़रूरी था क्या?-मैने विरोध जताया
’आप ने 5-रुपया दिया था क्या ? वो तो भला मनाईए कि मैने 4-पुरखों तक नहीं लपेटा-
मैने 5-रुपए थमाए और बोला-" बेटा आगे से ध्यान रखना’
’ठीक है स्साब ’
और मैं अदालत कक्ष में बने कठघरे में जा कर खड़ा हो गया
-आप का कोई वकील ?--जज ने पूछा
-नहीं ,मैं ही काफी हूँ । सच को झूठ की क्या ज़रूरत ,जज साहब !
’ठीक है। सरकारी वकील ज़िरह शुरु कर सकते है?
सरकारी वकील -’हाँ ! तो आप का नाम ?
-आनन्द पाठक-
-पिता का नाम ?
-उस अर्दली से पूछ लो जो अभी अभी आवाज़ लगा रहा था ’
मै निश्चिन्त था कि मेरे 5/- से अब अर्दली  मुँह नहीं खुलेगा
 सरकारी वकील ने कहा-’मैं आप से पूछ रहा हूँ । यह आप की साहित्यिक मंडली नहीं है कि  आप जो चाहे बोल दें लिख दें ..यह अदालत है अदालत ।यहाँ कुछ भी बोलने की स्वतन्त्रता नहीं । आप का पेशा ?
-व्यंग्य लिखना-
-मैं आप का पेशा पूछ रहा हूं }रोग नहीं’- सरकारी वकील ने कुटिल मुस्कान लाते हुए पूछा
-तो आप डाक्टर हैं क्या ?-
-अच्छा ! तो आप व्यंग्य लिखते हैं - तो आप व्यंग्य क्यों लिखते है
-कि समाज को आईना दिखाना है
- समाज को आईना क्यों दिखाना है ?समाज से बिना पूछे आईना दिखाने से अनधिकॄति ’ट्रेसपासिंग’ का केस बनता है। जज साहब नोट किया जाए
-कि उसको अपना चेहरा नज़र आए
-तुम्हे मालूम है समाज अपना विभत्स और कुरूप चेहरा देख कर डर भी सकता है,.... तुम समाज में डर फैला रहे हो-इस प्रकार से आतंक फैलाने से तुम्हारे ऊपर ’आतंक’ फ़ैलाने का केस बनता है-जज साहब नोट किया जाए
-नहीं वो डरता नहीं है ,हँसता है  ,वो समझता है कि इस आईने में उसका चेहरा नहीं ,किसी और का चेहरा है
-तुम्हें मालूम है कि तुम्हारे इस तरह आईना चमकाने से कुछ लोगों की आँखे चौधियाँ गई ....कुछ लोग अन्धे भी हो गए है ..जमीर धुँधला गया है अब उन्हें कुछ भी नहीं दिखाई देता ,,न भ्रष्टाचार..न बेईमानी..न भाई भतीजावाद,न सदाचार ,,न अपना कुरूप चेहरा...इस तरह से तुम समाज में वि्कृति फैला रहे हो? अन्धों को भी आईना दिखाते हो क्या ??
-नहीं । अन्धी क़ौम को आईना दिखाने का कोई लाभ नहीं
-तो इस का मतलब  तुम ’हानि-लाभ’ देख कर लिखने का व्यापार करते हो ?-जज साहब नोट किया जाय ।यह आदमी  बिना ’लाईसेन्स’ लिए व्यापार करता है -इस पर "अवैध व्यापार’ का केस बनता है
-नहीं मैं लिखता हूं~
सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना  मेरा मक़सद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए
-सूरत बदली क्या ? -वकील साहब ने पूछा --तुम्हारे लेखन से समाज का क्या भला हुआ क्या ...लोग पढ़ते है और कहते हैं ’मज़ा आ गया ’....क्या बखिया उधेड़ी है....क्या जम कर धुलाई की है...क्या ’लतियाया है ? पानी पिला दिया ... बस यही न ।तुम्हारे लिखने से समाज से  भ्रष्टाचार मिट गया क्या...?? समाज सुधर गया.क्या .?? नहीं न ,तो फिर क्यों लिखते हो.....
-वकील साहब !
दस्तकों का अब किवाड़ों पर असर होगा ज़रूर
हर हथेली खून से तर और ज़्यादा  बेक़रार

सरकारी वकील -और कौन कौन से लोग हैं तुम्हारे ’गिरोह’ में जिस से तुम्हे इस प्रकार के ’आतंकी ’कामों में मदद मिलती है
-गिरोह नहीं है ,’वर्ग’ कहिए वकील साहब ’वर्ग’ .....प्रेरणा  मिलती है ,...... बहुत हैं -  अकेले नहीं है हम ---हरिशंकर परसाई जी है...शरद जोशी जी है ..गोपाल चतुर्वेदी जी है..लतीफ़ घोंघी.....ज्ञान  चतुर्वेदी जी है ...... शौक़त थानवी कृशन चन्दर.. फ़्रिंक तौंसवी किन किन का नाम गिनाउँ.....और गिनाऊँ क्या....
-अरे भूतिए ! इन विभूतियों के नाम  अपने नाम के साथ क्यों घसीट रहा है ? ये महान विभूतियां है ..सम्मानित विभूतियाँ है ...पुरस्कॄति विभूतियां है ..ये समाज सुधारते है ..ये तुम्हारी जैसी गंदगी नहीं फैलाते....
-तो क्या हुआ ? दर्द तो एक जैसा है ....प्यास तो एक जैसी है...
-अच्छा तो पैसे के मामले में तेरी ’प्यास’ और अदानी -अम्बानी की ’ प्यास’ एक जैसी है क्या ???

आर्डर आर्डर आर्डर...जज साहब ने 3-4 बार अपना हथौड़ा ठक ठकाया -आप सिर्फ़ काम की ही बातें पूछें  फ़ालतू बातों से अदालत का वक़्त ज़ाया न करें-जज साहब ने हिदायत की
अरे वकील स्साब ! यह टटपूंजिया ही सही पर है व्यंग्य लेखक वकील स्साब ...व्यंग्य लेखक --इस से आप बहस में नहीं जीत पायेंगे--- वादी पक्ष के लोगो ने अलग से हिदायत की
आर्डर आर्डर आर्डर...जज साहब ने 3-4 बार अपना हथौड़ा ठक ठकाया --जज साहब ने कहा -हो गया ,हो गया । बहस पूरी हो गई
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जज साहब ने अपना फ़ैसला सुनाया-- ’तमाम गवाहों के बयानात को मद्दे नज़र रखते हुए और मुज़रिम के बयानात को दरकिनार करते हुए अदालत इस नतीज़े पर पहुँची है कि मुज़रिम अपने लेखन से समाज मै चेतना फैलाने की कोशिश कर रहा है इस से जनता में क्रान्ति के बीज पड़ सकते है ...जनता आन्दोलन कर सकती है ,,बगावत कर सकती है अत: ऐसे लेखकों का ’बाहर ’रहना जनहित में उचित नहीं है । साथ ही अदालत इस लेखक के व्यंग्य लेखन की ’नौसिखुआपन्ती’ और ’ कच्चापना’  के देखते हुए  और सहानुभूतिपूर्वक  विचार करते हुए ताज़िरात-ए-हिन्द की दफ़ा  अलाना..फलाना...चिलाना और .धारा अमुक अमुक अमुक ......में इसे ’अन्दर’ करती है और 3-महीने की क़ैद-ए-बा मश्श्क़त  की सज़ा देती है । तुम्हें इस सज़ा के बारे में कुछ कहना है
"हुज़ूर ..जेल में मुझे कुछ सादे पन्ने मुहैय्या कराने की इज़ाजत दी जाये-मैने  गुज़ारिश की
-मंज़ूर है
-और एक अदद ’कलम’ भी
-नहींईईईईईई........ जज साहब की अचानक चीख निकल गई ...."नहीं ,’कलम’ की इज़ाजत नहीं दी जा सकती ...’कलम’ लेखक का हथियार होता है और जेल में ’खतरनाक हथियार’ रखने की इज़ाजत नही है
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वादी पक्ष ने तालियाँ बजाई ..जज साहब की जय हो...एक और आईनादार ’अन्दर ’ गया ....साहब ने सज़ा नहीं , सज़ा-ए-मौत सुनाई है ---अगर सच्चा लेखक होगा तो 3-महीने में  "क़लम’ के बिना  यूँ ही मर जायेगा वरना तो ये भी कोई ’टाइम-पासू"-लेखक होगा

-आनन्द.पाठक-
08800927181
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रविवार, 18 सितंबर 2016

व्यंग्य 43 : बे-हाल पच्चीसी कथा 1

एक व्यंग्य : बे-हाल पच्चीसी -कथा 1

[आप ने ’बेताल-पच्चीसी’ की कहानियाँ ज़रूर पढ़ी होंगी जिसमें राजा विक्रमादित्य जंगल से एक बेताल को डाल से उतार कर,अपने कंधे पर लाद कर ले चलते हैं और बेताल रास्ते भर एक कहानी सुनाते रहता है ।बेताल शर्त रखता है कि अगर राजा विक्र्मादित्य ने रास्ते कुछ बोला तो वह उड़ कर फिर डाल पर जा कर उल्टा लटक जाएगा .....

,वैसे यह सभी कहानियाँ ’यू-ट्यूब’ पर उपलब्ध है.........

अब आगे पढिए उसी ’बेताल-पच्चीसी’ की ’बे-हाल पच्चीसी"-कहानियाँ -------......]
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’विक्रू ! तू आ गया ?? मुझे मालूम था कि तू ज़रूर आएगा "-- जंगल में डाल पे उलटा लटके हुए बेताल ने कहा-" अरे विक्रू ! जिस साधु की बात में आ कर तू मुझे यहाँ लेने आया है वह साधु ’ढोंगी’ है --तू नहीं समझेगा।’
राजा विक्रमादित्य ने आश्चर्य से उस बेताल को देखा और सोचा कि कल तक तो यह बेताल राजा विक्र्मादित्य महाराज विक्रमादित्य राजन ..राजन..कहता रहता था आज इसे क्या हो गया है आज ’विक्रू...विक्रू कर रहा है? सच है किसी को 2-4-10 बार कंधे का सहारा दे तो सर चढ़ जाता है ..हो सकता है प्यार से ’विक्रू ...विक्रू ’कर रहा हो जैसे आजकल की लड़कियां दो दिन में ही अपने ’ब्वाय फ़्रेन्ड’ विभूति नारायण सिन्हा को संक्षेप मे .विभू’...विभू ...सुखदेव परसाद चौरसिया को सुख्खू...सुख्खू..करती फिरती रहती है..मैं तो फिर भी इसे सदियों से ढो रहा हूं~

राजा विक्रमादित्य ,बेताल को डाल से उतार कर चलने लगे ,,..
’विक्रू;-बेताल ने कहा--- रास्ता लम्बा है तू थक जायेगा .चल मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ..
राजन चुप रहे
’तो सुन ’
राजन चुप रहे
....प्राचीन काल में इन्द्रपस्थ नगरी में ’केसरी खाल’ नाम का एक नेता हुआ करता था जो हमेशा ’ केसरी’ [सिंह] की’ ’खाल’ ओढ़े हुए रहता था। । वह अपने आप को ईमानदार की प्रतिमूर्ति समझता था और अपने को छोड़ , वह सारी दुनिया को चोर ..बेईमान.. भ्रष्टाचारी ...घूसखोर..कामचोर ....ठुल्ला समझता था ।उसे लगता था कि वह राजा ’हरिश्चन्द्र ’ का कलियुगी अवतार है और अब वह सभी भ्रष्टाचारियों ...घूसखोरों और ’ठुल्लों’ को जेल भेज कर ही दम लेगा । यह बात और है कि वह किसी को जेल न भेज सका मगर किसी केसरी की तरह दहाड़ता खूब था। ईमान प्रशासन की स्थापना हेतु हर बात पर धरना देने लगा एक बार तो वह अपने ही शासन के विरुद्ध ही धरना देने बैठ गया था।अब वह हर मंच से भ्रष्टाचार के विरुद्ध दहाड़ने लगा और जनता सचमुच उसे -’केसरी’ समझने लगी ।
’विक्रू ! तू जानता है वह नेता भी एक बूढ़े बाबा को अपने कंधे पर लाद कर शहर शहर घूमता था । बाबा ने भी मेरे जैसा ही एक शर्त रखा था कि हे केसरी! अगर तूने कोई पार्टी बनाई तो मैं उड़ कर अपने आश्रम चला जाऊँगा
बाबा उड़ कर अपने आश्रम चले गए....
राजन विक्रमादित्य चुप रहे..
’...हाँ तो मैं क्या कह रहा था ....हाँ वह नेता अपनी जनता का बहुत ख़याल रखता था और जनता को मुफ़्त में पानी -बिजली देने की बात करता रहता था ।कभी कभी जनता के ऊपर बोझ पड़ा कर्ज भी माफ़ करने की भी बात करता था ।वोट लेने के लिए ,गरीबों के सामने पूँजीपतियों को गालियाँ देता था और अमीरों से चन्दा लेने के लिए अमीरों के साथ पंच सितारा होटलों में ’डिनर’ करने हेतु ’टिकट बेचता था । वह रामराज्य लाने के बातें करने लगा ...सपने दिखाने लगा..जनता उसकी इन हितकारी बातों से बड़ी प्रभावित हुई कि सदियों बाद कोई नेता ,जनता का इतना हितैषी मिला है । हाय ऐसा नेता पहले क्यों नहीं पैदा हुआ .कितने अभागे थे हम । जनता ने बड़े उत्साह से प्रचंड बहुमत से उसे ’इन्द्रप्रस्थ का सिंहासन’ सौप दिया ।
अब वह नेता से राजा हो गया
उसके शासनकाल में भ्रष्टाचार खत्म हो गया...सभी घूसखोर..कामचोर झुण्ड के झुण्ड जेल जाने लगे .साथ निभाने के लिए साथ में कुछ मंत्री भी जेल जाने लगे । जनता को अब मुफ़्त में पानी मिलने लगा...मुफ़्त में बिजली मिलने लगी ...मुफ़्त में दवाईयाँ मिलने लगी...स्कूलों में फ़ीस माफ़ हो गए...जो काम पिछली सरकारों ने 20 साल में नहीं किया उसने 2 साल में कर दिया --बड़े बड़े ’होर्डिंग लगाए जाने लगे ..आंकड़े दिखाए जाने लगे ...टी0वी-विज्ञापन आने लगे पर हरे भरे खेत,,,..मुस्कराता हुआ किसान . हर हाथ को काम ..कुछ लोग सी0डी0 बनाने के काम में लग गए...-राज्य प्रगति-पथ पर निकल पड़ा अत: उसके सारे मंत्री राज्य से बाहर यात्रा पर निकल पड़े.....जनता मगन ...मच्छर मगन ...डेंगू मगन ... चिकनगुनिया मगन ..
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"तो हे विक्रू ! अब तू मेरे सवाल का जवाब दे कि इस के बाद भी जनता त्राहिमाम त्राहिमाम क्यों कर रही थी ....बता बता ..तू तो बड़ा ज्ञानी है..तू तो न्याय करता है.... बड़ा न्यायी बने फिरता है ,,,
राजा विक्रमादित्य चुप रहे
;बता कि जनता त्राहिमाम क्यों कर रही थी ,...जवाब दे नहीं तो तेरे सर के टुकड़े टुकड़े कर दूँगा....
राजन सहम गए ..इस बेताल का क्या भरोसा ...कही सचमुच सर के टुकड़े ही न कर दे । अत: बोल उठे
"हे बेताल ! तो सुन ! जनता भोली थी ..नेता की बातों में आ गई और भरोसा कर प्रचण्ड बहुमत दे दिया शायद जनता को पता न था

इतना जल्दी किसी पे भरोसा न कर
जरा देर की जान-पहचान में

-तो फिर? -बेताल ने पूछा
-अब जनता को 5-साल का इन्तज़ार करना पड़ेगा
-हे विक्रू ! तूने एक ग़लती कर दी....तूने शर्त तोड़ दिया ,,,तू बोल उठा....यह ले... मैं चला उड़ कर.. अपने डाल पर
और हाँ जाते जाते एक बात और सुन ले----”ज़िन्दा क़ौमें 5-साल इन्तज़ार नहीं करती’

अस्तु

-----अथ श्री ’-बेहाल पच्चीसी’-कथायाम प्रथमोsध्याय



-आनन्द.पाठक-

शनिवार, 13 फ़रवरी 2016

एक व्यंग्य 42 : वैलेन्टाईन डे.....उर्फ़ प्रेम प्रदर्शन --

एक व्यंग्य 42 : वैलेन्टाइन डे--उर्फ़ प्रेम प्रदर्शन दिवस


[ नोट-अब ’वैलेन्टाइन डे’ की उमर तो नहीं रही। बस लिख लिख कर ही मना लेता हूँ \जब जब ’पुरवा हवा’ बहती है --हड्डियाँ उस "वलैन्टाइन डे" की याद दिला देती है जब यह खाकसार शहीद होते होते बचा था। फ़गुनहटा अभी ठीक से बह नहीं रहा है --अभी तो  "वैलेन्टाइन डे’ की बयार है। इस पवित्र पावन अवसर पर अपना एक पुराना व्यंग्य धो पोंछ कर लगा रहा हूँ संशोधित और परिवर्धित संस्करण ।जो  अभी तक इस व्यंग्य के ’पठन सुख’ से वंचित रह गए  हैं ,उनके लिए------
 
कल वैलेन्टाईन डे है। यानी’ प्रेम-प्रदर्शन ’ दिवस ।

अभी अभी अखबार पढ़ कर उठा ही था कि मिश्रा जी आ गए।

अखबार से ही पता चला कि कल वैलेन्टाईन डे है। बहुत से लेख बहुत सी जानकारियाँ छपी थीं  । वैलेन्टाईन डे क्या होता है ,इसे कैसे मनाना चाहिए ।मनाने से क्या क्या पुण्य मिलेगा। न मनाने से क्या क्या पाप लगेगा । कितना ’परलोक’ बिगड़ेगा कितना परलोक सुधरेगा।अगले जन्म में किस योनि में जन्म लेना पड़ेगा। इस दिन को क्या क्या करना चाहिए ,क्या क्या नहीं  करना चाहिए.\.बहुत से ’टिप्स" बहुत सी बातें । वैलेन्टाईन डे पर ये 10 बातें न करें ...ये 10 बातें ज़रूर करें ।इस जन्म में क्या पता उसका बाप मिलने दे या न दे। अगले जन्म में मिलने का वादा ज़रूर करें -इस से -वैलेन्टाईन प्रभावित होती है।

 इधर नवयुवक नवयुवतियाँ बड़े जोर शोर से मनाने की तैयारी कर रही हैं  । अभी सरस्वती मैया की पूजा से फ़ुरसत मिली है । ज्ञान की देवी है सरस्वती मैया। हाल ही में ज्ञान मिला कि प्रेम से बढ़ कर कोई ज्ञान नहीं --ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय। पंडित वही होगा जो ’प्रेम’ करेगा वरना उम्र भर "पंडा’[ पांडा नहीं] बना रहेगा.... वैलेन्टाईन डे की पूजा कराता रहेगा।

नई पीढ़ी ग्रीटींग्स कार्ड की ,गिफ़्ट शाप की दुकानों में घुस गई है ।शापिंग माल भर गये हैं इन नौजवानों से ,नवयुवकों से, नवयुवतियों से । कोई कैण्डी बार खरीद रहा है ,कोई गुलाब खरीद रहा है ,कोई गिफ़्ट खरीद रहा है । खरीद ’रहा है’ -इसलिए कि लड़कियाँ गिफ़्ट नहीं खरीदती ,कल उन्हें गिफ़्ट मिलना है।

 एक लड़की दुकानदार से पूछती है-:भईया ! कोई ऐसा ग्रीटिंग कार्ड है जिस पर लिखा हो--- यू आर माई फ़र्स्ट लव एंड लास्ट वन।

" हाँ है न ! कितना दे दूँ बहन?

"5-दे दो"

;बस ?’-दुकानदार ने कहा -" मगर पहले वाली बहन जी तो 10 ले गई है"

’तो 10 दे दो न’

  सत्य भी है ।कल ’प्रेम प्रदर्शन दिवस’ है तो प्रदर्शन होना चाहिए न । देख तेरे पास 5,तो मेरे पास 10
---   ---
और इधर ,भगवाधारी लोग ,हिन्दू संस्कृति के वाहक , भारतीय सभ्यता के संरक्षक अपनी अपनी तैयारी कर रहे हैं । बैठके कर रहे हैं। यह ’अपसंस्कृति’ है । इसे रोकना हमारा परम कर्तव्य है ।वरना संस्कृति मिट जायेगी। डंडो मे तेल पिलाया जा रहा है।इसी से ’अपसंस्कृति’ रुकेगी। त्वरित न्याय होगा कल -आन स्पाट न्याय’ । भारतीय संविधान  चूक गया इस मामले में  सो हमने जोड दिया। हम कल खुलेआम ये नंगापन न होने देगें। जो वैलेन्टाईन डे मना रहे हैं  वो भटके हुए ,गुमराह लोग है उन्हें हम इसी डंडे से ठीक करेंगे

और पुलिस? पुलिस की अपनी तैयारी है ...जगह जगह ड्यूटी  लगाई जा रही है ...बीच पर..पार्क में ..रेस्टोरेन्ट में ,झील के किनारे ,,,बागों में.... वादियों में ...जहाँ जहाँ संभावना है ..वहाँ वहाँ ,,,किसी की ड्युटी दिल पर नहीं लगाई जा रही है ..इस दिन .दिल से प्रेम का प्रदर्शन नहीं होता ..सो पुलिस का वहाँ क्या काम?

 खुमार बाराबंकी साहब ने यही देख कर यह शे’र पढ़ा होगा...

 न हारा है इश्क़ और न दुनिया थकी है
 दिया जल रहा है  और हवा चल रही है


तैयारियाँ दोनो तरफ़ से जबर्दस्त हो रही है ...दीयों ने भी तैयारियाँ कर रखी है ,,,,हवायें भी तैयार है कल के लिए ...। फ़ैसला कल होगा

--------------
कल एक रेस्टराँ में बैठा था ।श्रीमती जी का ध्यान .मीनू-कार्ड’ पर था और मेरा ’कान’ पीछे वाली टेबल पर था जिस पर चार लड़कियाँ बैठी गपशप कर रही थी। हम दोनों अपने अपने काम में व्यस्त थे।
--यार मीनू ! मेरा वाला ब्वाय फ़्रेन्ड तो खूसट है साला --पिछले साल तो वैलेन्टाइन डे पर एक गुलाब थमा दिया साले ने--कंजड़ कहीं का। खाली हवा-हवाई बातें करता है

--तभी तो मैं कहती हूँ ,तू ठीक से ब्वाय फ़्रेन्ड सलेक्ट नहीं करती ---मेरा वाला तो खूब ’इन्वेस्ट’ करता है मुझ पर । हर मौके पर मुझे  नई मोबाइल देता है ,सूट देता है ,घुमाता है ,फिराता है  होटल ले जाता है खिलाता है पिलाता है ।बड़े घर का लड़का है पैसे वाला है।
इस बार तो कह दिया इस वलेन्टाइन पे नई कार लूँगी --नहीं तो बस कुट्टी---हाँ ---
--यार तू तो बड़ी लकी है---मुझसे भी मिलवा न एक दिन---

मैं ’इनवेस्ट’ शब्द सुन कर मन दुखी हो गया ।प्यार में भी ’इनवेस्टमेन्ट’ ?? प्यार प्यार न हो कर ’व्यापार’ हो गया । राम राम राम । यह दुनिया किधर जा रही है । जितने लाभ की उमीद---उतना "इन्वेस्ट्मेन्ट" ।यह वेलेन्टाइन डे वाली पीढ़ी कभी न समझ पाएगी कि सच्चा प्यार क्या चीज़ है । फिर सोचा मैं भी तो ’इन्वेस्ट्मेन्ट’ ही कर रहा हूँ श्रीमती जी को महीने में एक बार इस रेस्त्राँ में लाकर -----सोचा ---ये लड़के-लड़कियाँ सब----

"हे मिस्टर ! किधर खो गए --श्रीमती जी ने पूछा। मेरी तन्द्रा भंग हुई---" तुम्हारे लिए क्या ’आर्डर ’कर दूँ। डाक्टर नें तेल-घी से बनी  चीज़ मना किया है---’मसाला छाछ’ आर्डर कर दूँ ?
कितना ख़याल करती है मेरी यह पगली वैलेन्टाइन

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अखबार पढ़ कर उठा ही था कि सुबह ही सुबह मिश्रा जी आ धमके। जो हमारे नियमित पाठक हैं वो मिश्रा जी से परिचित है और जो पाठक अभी अभी इस ’चैनेल’ से जुड़े हैं उनके बता दे कि मेरी हर कथा में वह अयाचित आ धमकते है और अपनी राय देने लगते हैं । अगर आप उनकी राय मान लेते हैं तो रोज़ आते हैं , नहीं मानते हैं तो हफ़्ते दो हफ़्ते में एकाध बार आते हैं ।

अपनी हर राय में प्रेम चोपड़ा का एक डायलाग ज़रूर बोलते है...’ मैं वो बला हूँ जो शीशे से पत्थर तोड़ता हूँ। लगता है कि आज भी कोई न कोई पत्थर तोड़कर ही जायेंगे

आते ही आते उन्होने अपने ’शीशे’ से एक प्रहार किया

" अरे भई ! क्या मुँह लटकाये बैठे हो? कल .वैलेन्टाईन डे है ,कुछ तैय्यारी वैय्यारी की है नहीं"?

’क्या मिश्रा ! अरे अब यह उमर है ...वैलेन्टाईन डे मनाने की? बच्चे बड़े हो गये ,बाल सफ़ेद हो गये ,सर्विस से रिटायर भी हो गया ...अब  "आखिरी वक़्त में क्या खाक मुसलमाँ होंगे?’

’यार तुम्हें मुसलमान होने को कौन कह रहा है? वैलेन्टाईन डे  में बाल नही देखा जाता है  ,गिफ़्ट देखा जाता है गिफ़्ट ..उमर नहीं देखी जाती ..आल इज फ़ेयर इन ’लव’ एंड ’वार’

अखबार पढ कर मन तो था कर रहा था कि हम भी वैलेन्टाईन डे  मनाते ..हम 60 के क्यों हो गये ... हमारी जवानी के दिनों  मनाया जाता तो हम भी  5-10 वैलेन्टाईन बना कर रखते अबतक। अतीत में चला गया मैं...उस ज़माने में कहाँ होता था वैलेन्टाईन डे । पढ़्ने में ही लगा रहा...फिजिक्स...कमेस्ट्री ..मैथ। पढ़ाई खत्म हुई तो पिता जी ने एक ’वैलेन्टाईन ’ ठोंक दी मेरे सर ....35 साल से ’बेलन’ बजा रही है मेरे सर पर। यह मिश्रा बहुत काम का आदमी है कहता है वैलेन्टाईन डे मनाने की कोई उमर नहीं होती....न जाने कहाँ खो गया मैं, ख़यालों में....,

 -" अरे भाई साहब ! कहाँ खो गए ?कल .वैलेन्टाईन डे है ,कुछ तैय्यारी वैय्यारी की है नहीं"?

-यार कभी मनाया नहीं ,मुझे तो कुछ आता नहीं .. कुछ बता तो मनाऊँ

-पहले तो 1 वैलेन्टाईन होना ज़रूरी है । कोई है क्या?

-हें हें हें अरे यार इस टकले सर पे कौन वैलेन्टाईन बनेगी? 1-है तो ज़रूर जो मेरे शे’र पर  फ़ेसबुक पर वाह वाह करती है......’-मैने शर्माते शर्माते यह राज़ बताया

-" अच्छा तो तू उसे फोन मिला और कह कि कल वैलेन्टाईन डे है..........." मिश्रा जी ने अपने ’शीशे’ से दूसरा पत्थर तोड़ना चाहा

-यार मुझे करना क्या होगा ?पहले ये तो बता ’-मैने अपनी दुविधा बताई

-कुछ नहीं, बस बाज़ार से 2-4 ग्रीटिग कार्ड खरीद ले....,2-4  कैंडी बार ..2-4 कैडबरी चाकलेट  बार..2-4 गुलाब के फूल ,अध खिली कली हो तो अच्छा..2-4 पेस्ट्री ..2-4 केक ..2-4 .इश्क़िया शे’र -ओ-शायरी ....2-4...."

-;यार मिश्रा ! तू वैलेन्टाईन डे मनवा रहा है कि सत्यनारायण कथा की ’पूजन सामग्री ’ लिखवा रहा है ।

-भई पाठक जी ! वैलेन्टाईन डे भी किसी ’पूजा’ से कम नही । वो खुश नसीब होते है जिन्हें कोई ’पूजा’ डाइरेक्ट मिल जाती है

और यह 2-4 दो-चार क्या लगा रखा है?-और वैलेन्टाईन डे में ’केक’ का क्या काम ?

-कुछ आईटम रिजर्व में रखना चाहिए। एक न मिली तो दूसरे में काम आयेगा...और जब पुलिस तुम्हे डंडे मारेगी पार्क में  तो वही ’केक’ उसके मुँह पर पोत देना..भागने में  सुविधा रहेगी- मिश्रा जी ने ’केक’ की उपयोगिता बताई

-और गुलाब का फूल ’लाल’ लेना है कि ’सफ़ेद ?

-सफ़ेद गुलाब ??? -मिश्रा जी अचानक चौंक कर बैठ गए -बोले---"यार तू वैलेन्टाईन डे मनाने जा रहा है कि मैय्यत पर फूल चढ़ाने जा रहा है?

-यार मिश्रा ! शे’र-ओ-शायरी में मेरा शे’र चलेगा क्या ?

तू सुना तो मैं बताऊँ-"

 मैने अपना एक शे’र बड़े तरन्नुम से बड़ी अदा से  बड़ा झूम झूम कर पढ़ा....

   नुमाइश नहीं है ,अक़ीदत है दिल की
   मुहब्बत है मेरी इबादत में शामिल




मिश्रा जो ठठ्ठा मार कर हँसा कि मैं घबरा गया कि कहीं शे’र का ’बहर’ /वज़न तो नही गड़बड़ा गया कहीं तलफ़्फ़ुज़ तो ग़लत तो नहीं हो गया ।

 मिश्रा जी ने रहस्योदघाटन किया कि तुम्हारे ऐसे ही घटिया शे’र से कोई वैलेन्टाईन  नहीं बनी और न बनेगी । और जो बनाने जा रहे हो सुन कर वो भी भाग जायेगी...एक काम करो...तुम शे’र-ओ-शायरी वाला पार्ट मेरे ऊपर छोड दो..... भुलेटन भाई पनवाड़ी के पास इश्क़िया शायरी का काफी स्टाक है,.... सुनाता रहता है ...कल मैं 2-4 शे’र तुम्हें लिखवा दूँगा ...

अच्छा तो मैं चलता हूँ

मिश्रा जी चलने को उद्दत हुए ही थे  कि यकायक ठहर गये..पूछा

-यार भाभी जी नहीं दिख रही है : कहीं गई है क्या :

-हाँ यार ! ज़रा 2-4 दिन के लिए मैके गई है

-मैके? और इस मौसम में? भई मैं तो कहता हूँ कड़ी नज़र रखना उन पर  । कही वो  न .वैलेन्टाईन डे मना लें मैके में~’-  कहते हुए मिश्रा जी वापस चले गये

-अस्तु-




शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2016

व्यंग्य 41 : तमसोऽ मा ज्योतिर्गमय...



आज बसन्त पंचमी है -सरस्वती पूजन का दिन  है ।

या कुन्देन्दु तुषार हार धवला या शुभ्र वस्त्रावृता
या वीणा वर दण्ड मण्डित करा या श्वेत पद्मासना
या ब्र्ह्माच्युत् शंकर प्रभृतिभि देवै: सदा वन्दिता
सा माम् पातु सरस्वती भगवती  नि:शेष जाड्यापहा

क्षमा करें माँ !

क्षमा इस लिए मां कि उपरोक्त श्लोक के लिए ’गुगलियाना’ पड़ा [यानी ’गूगल’ से लाना पड़ा] छात्रावस्था में यह ’श्लोक’ मुझे कंठस्थ था ,प्राय: काम पड़ता रहता था विशेषत: परीक्षा के समय ..सुबह शाम यह श्लोक रटता रहता था कि हे माँ !सरस्वती बस इस बार मुझे  पास करा दे...अच्छे नम्बर की माँग नहीं करता था ।कभी कभी हनुमान जी को भी स्मरण कर लेता था ,शायद वही उद्धार कर दें । माँ वह आवश्यकता थी ,प्रीति थी सो इस श्लोक को याद रखना और विश्वास करना मेरी मज़बूरी थी । जब पढ़ाई लिखाई खत्म हो गई तो श्लोक का सन्दर्भ भी खत्म हो गया । सो भूल गया था ।इसी लिए ’गुगलियाना’ पड़ा। जब रोजी-रोटी का ,धन कमाने का समय आया तो ’लक्ष्मी-पूजन’ का श्लोक याद रखने लगा ।माँ ! यह स्वार्थ नही था मां ,प्रीति थी ।मेरी ज़रूरत थी। तुलसीदास ने पहले ही कह दिया है

सुर नर मुनि सबकी यह रीती
स्वारथ लाग करहि सब प्रीती

आज मैं फ़ुरसत में हूँ माँ। रिटायरमेन्ट के बाद यह मेरा पहला पूजन है आप का । पेन्सन फ़िक्स होने के बाद ’लक्ष्मी ’ जी फ़िक्स हो गई जो आना था सो आ गईं सोचा कि अब आप का ही  विधिवत पूजन करू। सेवा काल में तो काम चलाऊ -ॐ अपवित्र : पवित्रो वा...सर्वावस्थां गतोऽपि वा...." -- कह कर कुछ माला-फूल चढ़ा कर जल्दी जल्दी पूजा कर के आफ़िस निकल जाता था । आज कोई जल्दी नहीं है । टाईम ही टाईम है...बास की कोई मीटिंग नहींं....कोई झूठा-सच्चा स्टेटमेन्ट नहीं भेजना...कोई प्रेजेन्टेशन नहीं देना...कोई टेन्सन नहीं....आज पूरा श्लोक पढूंगा...याद करूँगा

  हे माँ ! मै ही आप का आदि भक्त हूँ । हर भक्त ऐसा ही कहता है सो मैं कह रहा हूँ।60-साल की उम्र में 55 साल से पूजा अर्चना कर रहा हूँ आप का । हर वर्ष करता हूँ । 55 साल इस लिए कि मेरी पढ़ाई ही जन्म के 5-साल बाद शुरु हुई। गाँव के ही एक स्कूल में पिता जी ने नाम लिखवा दिया तो विद्या आरम्भ ,आप की पूजा आरम्भ।पट्टी दवात दूधिया सम्भाला । लिखता तो कम था .पट्टी पर कालिख लगा कर दवात से रगड़ रगड़ कर चमकाता ज़्यादा था फिर उस पर सूता भिंगो कर लाईन मारता था [पाठकगण "लाईन मारने" का कोई ग़लत अर्थ न निकालें ] यानी लाईन खीचता था कि लेखन सीधा रहे ।फिर   लिखना सीखा ’अब घर चल’ ...अब घर चल ...अब घर चल ।1 साल तक यही लिखता रहा तो मास्साब ने इसका मतलब समझ लिया और सचमुच मुझे घर भेज दिया

फिर पिता जी  शहर चले आये ।और यहाँ बेसिक प्राइमरी पाठशाला मुन्स्पलिटी के स्कूल में नाम लिखा दिया जो घर के बिल्कुल पास में था । अगर पिता जी ज़मीन्दार होते ,[जो कि वह नहीं थे] तो वह स्कूल मेरे घर के आंगन में होता । इस नज़दीकी का फ़ायदा मैने खूब उठाया और हर घंटी के बाद पानी पीने घर ही आ जाया करता था। पिता जी को मुहल्ले वालों ने काफी समझाया कि ’कान्वेन्ट’ स्कूल के बच्चे ’स्मार्ट’ होते हैं ..पिता जी  ’नज़दीकी’ वाले तर्क से सबको पराजित कर दिया करते थे ..शायद उस समय उनकी ’पाकेट’ उतनी गहरी न रही होगी जितना ’कान्वेन्ट’ स्कूल के लिए चाहिए था । अत: मैं ’स्मार्ट’ तो न बन सका माँ ...लढ्ड़ का लढ्ड़ ही रहा और नतीजा आप के सामने है कि आजतक बस ’अल्लम गल्लम बैठ निठ्ठलम :-व्यंग्य लिख रहा हूँ।

शहर में आ कर भी समस्या वहीं की वहीं बनी रही ---यानी पास होने के लाले पड़े रहते थे। कक्षा 3- में आया खूब मेहनत की कि इस बार तो पास होना ही है कि इसी बीच चाईना वालों ने युद्ध छेड़ दिया .इस से फ़ायदा यह रहा कि अपने ’फ़ेल’ होने का सारा दोष ’चाइना’ पर मढ़ दिया। लश्टम पश्टम करते इन्टर तक पहुंचा ही था कि इस बार ’पाकिस्तान’ ने युद्ध छेड़ दिया तब मुझे पहली बार आभास हुआ कि हो न हो मेरे फ़ेल होने में विदेशी शक्तियों का ’हाथ’ है।खैर माँ ,आप की कृपा से किसी तरह इन्जीनियर बन गया ..काम बन गया।

मां ! आप ज्ञान कला संगीत की अधिष्टात्री देवी हैं।आप साहित्यकारों की ,बुजुर्गों की इष्ट देवी है ।भगवा धारी  की भी हैं  ,छात्र-छात्राओं की भी है  , युवाओं की भी है ,सभी साथ साथ पूजा में व्यस्त है }2-दिन बाद इसी उत्साह से उन्हें ’वैलेन्टाइन-डे’ भी मनाना है ।तब भगवा धारी साथ साथ नहीं रहेंगे ।आप का ज्ञान उन्हें प्राप्त हो चुका होगा कि ’प्रेम-प्रदर्शन’ -अपसंस्कृति है । तब उनके हाथ में ’संस्कृति’ का डंडा रहेगा -जो ’अपसंस्कृति’ को ठीक करेंगे । इस काम का ठेका आजकल उन्हीं के पास है।

आप ने सबके हाथ में ज्ञान का मशाल दे दिया । लोग ज्ञान की अपनी अपनी व्याख्या से मशाल ले कर चल दिए। सब की अपनी अपनी मशाल ।हिन्दू की मशाल अलग...मुस्लिम की मशाल अलग। ज्ञान के इस रोशनी में चेहरे नज़र आने लगे -कौन हिन्दू है ,कौन मुसलमान है  । हिन्दुओं में भी अलग अलग हाथों में अलग मशालें ।मेरे ज्ञान की मशाल में ज़्यादे रोशनी है । सबूत? सबूत क्या? घर -मकान-बस्तियाँ जला कर दिखा देते है । हाथ कंगन को आरसी क्या ।और कई बार दिखा भी दिया । और इधर, ब्राह्मण महासंघ...राजपूत महासंघ ...तैलीय समाज..वैश्य समाज..वाल्मिकी समाज... इस ज्ञान की मशाल में चेहरे दर चेहरे और साफ़ नज़र आने लगे ..आदमी ही आदमी ......’आदमियत’ अँधेरे में चली गई ..कहीं नज़र नहीं आ रही है.....।हम यहीं तक नहीं रुके। हर महासंघ में एक महासंघ।पहिये के अन्दर पहिया-’ व्हील विद इन व्हील "  ब्राह्मण समाज ही को ले लें ...गौड़ ब्राह्मण ....कान्यकुब्ज़ी ...सरयूपारीय ...पराशर.... यही हाल क्षत्रिय संघ ,वैश्य समाज सब के हाथ में एक एक मशाल .....संघौ शक्ति कलियुगे........."तमसो मा ज्योतिर्गमय-....अभी तक हम अंधेरे में थे ..ज्ञान का प्रकाश मिलता गया  हम अंधेरे से रोशनी की तरफ़ बढ़ते गए...हम बँटते गए

 राजा भोज आप के अनन्य भक्त थे । अपने शासन काल में  भोज शाला  में आप की पूजा विधिवत और बड़े धूम धाम से कराते थे । आजकल उनके भक्त कर रहें है करा रहे है । कल टी0वी0 पर समाचार आ रहा था कि भोजशाला में आप का पूजन अर्चन चलेगा और पास में ही जुमा की नमाज़ भी चलेगी। किसी ज़माने में यह भाई-चारे का प्रतीक रहा होगा ,आप की कृपा से अब हमको ज्ञान प्राप्त हो गया है --दोनो का ज्ञान अलग अलग ..मेरा ज्ञान तेरे ज्ञान से बेहतर ...तेरा ज्ञान मेरे ज्ञान से कमतर.. । ’धार’ मे लोग अपने अपने-अपने ज्ञान को ’धार’ दे रहे हैं -और बीच में पुलिस का डंडा । कहीं दोनो का ज्ञान आपस में मिल न जाय ’वोट’ बैंक का मसला है कुर्सी बचानी है तो इन्हें अलग अलग रखना ही बेहतर है

राजा भोज की बात चली तो ’गंगू तेली’ की बात चली। लोगो ने इस कहावत के अपने अपने ढंग से व्याख्या की कुछ ने ’गांगेय’ और "तैलंग’ का संबन्ध बताया जो कालान्तर में ’गंगू’ बन गया
किसी ने ’गंगू’ तेली के राज्य हित में बलिदान की बात बताई । मगर हमारे ज्ञान भाई [ ज्ञान चतुर्वेदी जी[भोपाल वाले] ने पतली गली से रास्ता निकाल लिया....बताया वर्तमान में कई राजा ’भोज’ है ..भोपाल के राजा ’भोज’ अलग ..लखनऊ के राजा भोज अलग...दिल्ली के राजा भोज अलग..ग्राम पंचायत के राजा भोज अलग ।..और गंगू तेली? गंगू तेली यानी -हम

इसी सिलसिले में एक पतली गली हम ने भी निकाली । मीडिया वालों नें अपना कैमरा मेरी तरफ़ नहीं किया वरना हिन्दी जगत को इस मुहावरे को एक नया रूप मिल गया होता....
वस्तुत: इस मुहावरे को ---कहाँ राजा "भोज’ कहाँ ;भोजू’ तेली --होना चाहिए था ।”भोजू’  का राजा ’भोज’ के साथ समानता भी बैठ रही है।  इसी बिना पर तो ’भोजू’ तेली भी अपने को राजा भोज समझने लगा होगा और ऐठ कर चलने लगा होगा तो किसी ने तंज़ किया होगा...वैसे ही जैसे कल शाम शुक्ला जी मुझ पर तंज़ किया---कहाँ मुल्कराज आनन्द....और कहाँ आनन्द.पाठक आनन्द....हा हा हा हा हा ।

तो हे माँ सरस्वती ...आज का पूजन यहीं तक ।अगला पूजन अगले बसन्त पंचमी को

सादर/अस्तु

-आनन्द.पाठक-



शुक्रवार, 29 जनवरी 2016

व्यंग्य 40 : अवसाद में हूं ..

अवसाद में हूँ...

जी हाँ, आजकल मैं अवसाद में हूँ । अवसाद में हूँ इस लिए नहीं कि कल बड़े बास ने डाँट पिला दी।  इस ठलुए निठलुए पर जब वह डाँट पिलाने का कोई असर नहीं देखते हैं तो  खुद ही अवसाद में चले जाते हैं। मैं अवसाद में इसलिए भी नही हूँ कि मैं रिटायर हो गया -ताड़ से गिरा खज़ूर पे अटका और श्रीमती जी की सेवा में लग गया और मटर [अभी सीजनल फ़ली यही है] छीलने में लग गया। अवसाद में इसलिए भी नहीं हूँ कि मुझे अपनी किसी बेटी की शादी करनी है ..भगवान ने पहले ही इस ’सुख’ से वंचित कर दिया।

जब से "असहिष्णुता" के नाम पर कुछ लोग "अवार्ड’  लौटाने लगे तो मैं अवसाद में आ गया। मेरे पास कोई ’अवार्ड’ नहीं है कि मैं भी लौटा आता सरकार को --यह ले अपनी लकुट कमरिया मेरौ काम न आयौ-। उन लोगों की अन्तरात्मा कभी कभी जगती है...बाक़ी समय सोती रहती है । जब जगती है तो अचानक ख़याल आता है अरे! मेरे निद्रा काल में इतना सब कुछ हो गया ...धिक्कार है इस निद्रा को। जमाना क्या कहेगा  ....साहित्यकार है ..बुद्धिजीवी हैं ...समाज के प्रहरी है... हमें जगे रहना है ..समाज को जगाए रहना है तो जगने का प्रमाण पत्र देना ही होगा...मुझे अपना ’अवार्ड’ लौटाना ही होगा ...
मैं जानता हूं वह सड़कों पर नही उतरेंगे..झण्डा नहीं उठायेंगे.....वह आन्दोलन नहीं करेंगे.....आन्दोलन के लिए युवा पीढ़ी है ...वह तो बस ’अवार्ड’ लौटायेंगे और  लौटाने के बाद  फिर सो जायेंगे ...फिर कभी जगने के लिए...
इसी बात का अवसाद है मुझे कि मेरे पास कोई सरकारी ’अवार्ड’ नहीं है कि मैं भी लौटा आता और अपने जगे होने का प्रमाण दे आता वरना दुनिया मुझे ’मुर्दा’ ही समझ्ती होगी...’असहिष्णु’ ही समझ रही होगी। कुछ ’अवार्ड’ है मेरे पास पर सरकारी नहीं हैं  ..नितान्त व्यक्तिगत है..श्रीमती जी ने दिये हैं बिना किसी खर्चे पानी के..। जैसे "निठ्ल्ले है आप "...कामचोर.. आलसी..’कलम-घिसुआ" अवार्ड [मेरे लेखन प्रतिभा से प्रभावित हो कर] वग़ैरह वग़ैरह। कुछ ’खिताब’ तो ऐसे हैं कि मैं यहां लिख नहीं सकता ..पर आप समझ सकते है। उस में से एक अवार्ड ये भी है -" क्या .....   की तरह मेरे पीछे पीछे घूमते है। रिक्त स्थान आप स्वयं भर लें अपनी सुविधानुसार। मैं कई बार ऐसे ’अवार्ड’ लौटाने के लिए श्रीमती जी को कहा ...मगर वह लेने को तैयार नहीं ...कहती हैं सही ’अवार्ड’ दिया है .रखिए अपने पास ....एक और दूँ क्या !!

बड़े लोगों की बात और है। वो ’अवार्ड’ पाते हैं तो तालियाँ बजती हैं ,,,और जब लौटाते हैं तो और बजती है..बड़े लोग ’गालियाँ’ भी देते हैं तो ’तालियाँ; बजती है । सही वक़्त पर सही निर्णय लेते है....सही दलील देते है....मानना न मानना आप पर छोड़ देते है। और मैं ?अगर मैं अवार्ड लौटाऊँ तो श्रीमती मेरी ही बजा देंगी।

कल शाम मुझे अवसाद में देख ,नुक्कड़ का भुलेटन पनवाड़ी से रहा न गया....." उस्ताद क्या बात है"? फिर कहीं मंच पर कोई ’शे’र पढ़ दिया क्या कि मुँह सूजा हुआ है?"

 भाई भुलेटन की नुक्कड़ पर पान की दुकान है ...भुलेटन पान दरीबा"..यहीं पर सुबह शाम मुलाकात होती है । एक बार मैं उस के किसी बब्बर शे’र का इस्लाह कर दिया था तभी से वो मुझे उस्ताद कहने लग गया और कभी कभी  गुरु-दक्षिणा में 1-2  गिलौरी पेश कर देता है। शायर तो वह भी ..फिर हम दोनों एक दूसरे को शे’र सुनाते रहतें है और दाद वाद देते रहते हैं ..वो मेरा पीठ खुजा देता है और मैं उसका जब कि वह अपने को ’मीर’ और मैं अपने को ’ग़ालिब’ समझने लगता हूँ...
"क्या बात है उस्ताद ...मुँह सूजा सूजा लगता है"---- भुलेटन भाई ने पूछा
" यार भुलेटन ! आजकल अवसाद में हूं"
" भाई ! ये ’अवसाद’ क्या होता ? ,,,,भुलेटन ने जिग्यासा प्रगट की
"तू नहीं समझेगा...तू तो बस पान लगा। बड़े लोगों के चिन्तन को अवसाद कहते हैं  ...लोग अपना अपना ’अवार्ड’ लौटा रहें है और मेरे पास कोई ’अवार्ड’ नहीं है कि मैं भी लौटा देता...बस इसी बात की चिन्ता यानी चिन्तन है "
" अरे उस्ताद बस ,इतनी सी बात । अरे कल ही आप को अवार्ड दिलवा देता हूँ वो भी बिना हर्रे-फिटकरी के"
"अरे ! तू और तेराअवार्ड ? यार भुलेटन मजाक न कर ... मैं अभी गहन चिन्तन में हूँ"

तरदामनी पे शेख हमारे न जाइयौ
दामन निचोड़ दूँ तो फ़रिश्ते वज़ू करें   -------पता नहीं भुलेटन भाई किस शायर का शे’र पढ़ गए...

खैर मैने पूछा -" अवार्ड क्या तेरी पान की गिलौरी है कि जिसको चाहे उसको दे दे?
"नहीं उस्ताद ’आथिन्टिकेटेड अवार्ड’ दिलवाऊँगा....’अखिल भारतीय पनवाड़ी संघ का कल्चरल सेक्रेटरी जो हूँ"
"अरे ये नुक्कड़ और ये तेरा अखिल भारतीय....!!"
अरे उस्ताद ! अब तो गली गली में अखिल भारतीय कवि सम्मेलन /मुशायरा होने लगा है ,,बैनर ही तो लगाना है खाली..बस 2-4 फोटू खिचवा  लेना...रमनथवा से माला-फूल चढ़वा देंगे आप पर...
फिर आप जो लिख कर देंगे वही ’प्रशस्ति-पत्र" पढ़वा देंगे...श्यम ललवा से .।.बस हो गया आप का अवार्ड ....फ़ेसबुक पर चढ़ा देना...मिल ही जायेंगे 100-50 वाह वाह करने वाले...फिर चाहे ये अवार्ड रखो या लौटाऒ कोई पर्क़ नहीं पड़ता...."  भुलेटन भाई ने अवार्ड का ’रहस्य’ और ’महत्व’ समझाया

-सौदा कोई बुरा नहीं था...सो अवार्ड ले ही लिया..."अखिल भारतीय पनवाड़ी संघ व्यंग्य सम्राट " का
सोचा कि अब वक़्त आ गया कि इसे ’फेसबुक’ पर चढ़ा दूं....
..देखा कि वहाँ तो पहले से ही ऐसे 50-60 "अवार्डी" हैं
सोचता हूँ कि फिर कही ’दंगा’ या कोई ’असहिष्णु’ हो तो  विरोध स्वरूप  मैं भी यह ’अवार्ड’ लौटा दूँ....यह ले अपनी लकुट कमरिया.......

-अस्तु

-आनन्द.पाठक
09413395592