बुधवार, 15 जुलाई 2020

एक व्यंग्य 60: काला घोड़ा सफेद घोड़ा

एक व्यंग्य : काला घोड़ा-सफ़ेद घोड़ा

शतरंज की बिसात --बिसात पर घोड़े--काले घोड़े--सफ़ेद घोड़े 
शतरंज की बाजी --घोड़ों की चाल । धरती धोरां री ।

---घोड़े हिनहिनाए ।

घोड़ा हिनहिनाता है ,मख़्खियाँ भिनभिनाती है और आदमी भुनभुनाता है ।और ऊँट ?
ऊँट बलबलाता है -जब कुर्सी पर नहीं रहता , खाली रहता है ।

प्रदेश के अस्तबल में सफ़ेद वाले घोड़े भुनभुनाते हुए हिनहिनाने लगे ।भुनभुना तो वो ख़ैर  एक साल से रहे थे।
दिल्ली सुन नही रही थी। इस बार सब एक स्वर में हिनहिना उठे ।

दिल्ली ने पूछा-क्या बात है?  हिनहिना क्यों  रहे हो ।
काले घोड़ो ने अपनी व्यथा सुनाई - ये सफ़ेद  घोड़े वाले हरी हरी घास खा रहे हैं ।मस्त हैं ।हमारा  मालिक तो हमे घास  ही नही डालता ।भाव ही नहीं देता-  और डालता भी है तो सूखी घास । न खाते बनता है --न छोड़ते  । सफ़ेद वाले मुस्तंडे हो गए , हम डंडे के डंडे ही रह  गए ।क्या इसी सूखी घास के लिए हम इस ’अस्तबल’ में आए थे?  हिनहिनाएँ नहीं तो क्या करें ।

देखते हैं --कह कर दिल्ली ने अपनी जान छुड़ाई।

  20-25 काले घोड़े अपने छोटे मालिक के साथ हो लिए और अस्तबल से बाहर निकल आये । कहने लगे अस्तबल में बहुत गंदगी भर गई थी। हमारा कोई सम्मान ही नहीं वहाँ तो हम क्या रहते इस अस्तबल में।काले घोड़ों का मालिक उन सबको अपने साथ लेकर जाने लगा पूरब दिशा की ओर किसी पंचतारा ’रिसार्ट’ की तरफ़।

"अरे उन घोड़ो को लेकर  कहाँ जा रहे हो उधर ? ’ - सफ़ेद घोड़ों के सौदागर ने आपत्ति जताई -’विधान सभा इधर है ।
"हाँ हाँ मालूम है विधान सभा किधर है ।पहले हम इन्हे " रिसार्ट’ में रखेंगे --खिलायेंगे--पिलायेंगे--समझायेंगे -बुझायेंगे--वीडियो करायेंगे- -बयान  दिलवायेंगे--मीडिया के सामने परेड करायेंगे--फिर विधान सभा में लायेंगे । देख लेना मेरे पास कितने घोड़े है ? हमारे  घोड़े रंग नहीं बदलते ।

हा हा हा वो रंग क्या बदलेंगे  ! काली कमरिया चढ़्यो न दूजो रंग --- सफ़ेद घोड़ों के मालिक ने तुर्की-ब-तुर्की जवाब दिया ।

  इधर सफ़ेद घोड़ो के छोटे  मालिक ने भी अपने घोड़ों को  साथ ले कर  ’फ़ाइव स्टार’ होटेल में छुपा दिए । बोले -ढूंढो तो जानू ।

इन घोड़ो को प्रदेश की ’ग़रीब’ जनता ने चुन कर अस्तबल भेजा था कि इन सौदागरों ने बाँट लिए ।और ये  5-स्टार
होटेल में  फ़ाइव स्टार रिसार्ट में ’क़ैद’ कर लिए गए । फिर खूब सेवा सुश्रुषा होती -खिलाना पिलाना,आमोद प्रमोद होता है। मोबाईल रखवा लिए जाते हैं । सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर कर दी जाती है। छोटे मालिक की उन पर हमेशा पैनी नज़र रहती है कोई बंदा इधर से उधर न छटक जाए। फिसलने में कितना समय लगता है ।
-ग़रीब जनता के हित में । कितना कष्ट सहते है ये लोग हम ग़रीबो के लिए ।

घोड़ों के साथ यही समस्या है । जब खुश रहते हैं तो सवारी कराते है अपने मालिक की --जब बिफ़रते हैं तो ’दुलत्ती’  मारते है अपने मालिक को। हिनहिनाते ऊपर से हैं।

जब शतरंज की बिसात बिछती है तो ये अपनी चाल चलते है ।सफ़ेद घोड़ो की चाल अलग। काले घोड़ों की चाल अलग । चलेंगे ’ढाई घर ’ । न जाने किस वाले घर में बैठ जाएँ } बाये न दायें । एक पार्टी ने तो अपना दरवाज़ा
ही ’खुला ’रख छोड़ा  है -इसी काम के लिए ।

कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दे -तड़पता हुआ जब कोई छोड़ दे
तब तुम मेरे पास आना प्रिये ! --मेरा दर खुला है ,खुला ही रहेगा तुम्हारे लिए

उधर वाला घोड़ा सोचता है यार उधर का ’दर’ [ रेट ] इधर से ज़ियादा है क्या?
सामने वाला दस बार सोचता है --खुला  ’दर’ है। इधर का ’दर’ कुछ कम लगता है ज़रा ।
फिर सोचता है यार

 इधर से ऊब जायेंगे  तो  उधर  चले जायेंगे
 जा कर वहाँ’ भी चैन ’ न पाया तो कहाँ जायेंगे?

्काले  घोड़े वाले ने अपने एक भूतपूर्व मित्र से पूछा - यार ,उधर की घास कैसी है ?
-बहुत हरी हरी है ,नर्म है ,मुलायम है ,मखमली है ----आ जाओ । क्या सोच रहे हो?
उधर दिल्ली के एक सेवक ने अपनी मालकिन से कहा --- जब सारे घोड़े एक एक कर के निकल जायेंगे तब देखियेगा क्या "
-देखते हैं -- कह कर मालकिन ने अपनी जान छुड़ाई ।

सामने वाली पार्टी  के एक आचार्य ने -जिनका ’दर’ हमेशा खुला रहता है ऐसे शुभ कार्यॊ के लिए -  प्रवचन करते हुए कहा --

" भक्तों ,शास्त्रों में लिखा है  घोड़े उधर ही आते  है ,जिधर हरियाली होती है । प्रेम से बोलो---लोकतन्त्र की जय ।
अस्तु

-आनन्द पाठक -
स व्यंग्य का वाचन मेरे यू-ट्यूब चैनेल ---मुखौटॊं की दुनिया-- में सुन सकते हैं




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