बुधवार, 11 फ़रवरी 2015

व्यंग्य 30 : लघु कथा: मेढक और बैल

एक लघु व्यंग्य कथा- 06

.......... नेता जी ने तालाब का उद्घाटन कर दिया। तालियां बजने लगीं।किनारे पर बैठा मेढक, मारे डर के छपाक से पानी में कूद गया
तालाब में मेढक के साथियों ने पूछा- क्या हुआ?  घबराए हुए क्यों हो?
मेढक - मैने एक नेता देखा
अन्य मेढक ने पूछा  - नेता कैसा होता है?
मेढक - बड़ी बड़ी तोंद होती है ।सफ़ेद खादी का कुर्ता पहनता है । टोपी पहनता है और पहनाता है
अन्य मेढक ने पूछा- खादी कैसा होता ?
मेढक -सफ़ेद होता है
अन्य मेढक - तोंद कैसी होती है ?
इस बार मेढक सावधान था .।उसे मालूम था कि पिछली बार उस के पिताश्री इन्ही मूढ़ मेढकों को "बैल" का आकार समझाने के चक्कर में पेट फुला फ़ुला कर समझा रहे थे कि मर गए  । इस बार का मेढक समझदार था।
मेढक ने कहा - तुम सब मेढक के मेढक ही रहोगे। बाहर चल कर देख लो कि नेता का तोंद कैसा होता है?
सभी मेढक टर्र टर्र करते उछलते कूदते नेता जी का तोंद देखने किनारे आ गये ।मगर नेता जी उद्घाटन कर वापस जा चुके थे
मेढको ने कहा -नेता का तोंद कैसा होता है?
इस बार मेढक पास ही बैठे जुगाली करते हुए सफ़ेद साढ़  की पीठ पर उछल कर जा बैठा और बोला-"ऐसा"
तभी से सभी मेढक ’जुगाली करते साँढ़’ को ही ’नेता’ का पर्याय मानने लगे ।
वो मेढक कुएँ के मेढक नहीं थे ।

-आनन्द पाठक-
09413395592

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